न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मोहाली (पंजाब)
Published by: ajay kumar
Updated Sat, 14 Aug 2021 12:01 AM IST
सार
मोहाली की अनुरीत पाल कौर दुनिया की पहली अलगोजा बजाने वाली महिला बन गई हैं। पंजाब में खो रहे इस लोकसंगीत को अनुरीत ने संजीवनी दी है। उन्होंने 2017 में अलगोजा थामा था। अंतरराष्ट्रीय अलगोजा वादक करमजीत सिंह बग्गा ने अनुरीत को सुर सिखाए। आज अनुरीत ने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है।
अनुरीत पाल कौर। – फोटो : अमर उजाला
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मोहाली की बेटी ने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। फेज एक की रहने वाली अनुरीत पाल कौर विश्व की पहली अलगोजा वादक महिला बन गई हैं। अनुरीत चार साल से अलगोजा बजा रही हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का लोहा मनवा चुकी हैं।
आज के कानफाड़ू संगीत के बीच भले ही पंजाब का लोकसाज अलगोजा कहीं खो गया हो लेकिन इसकी मीठी धुन के बिना पंजाबी विरसा अधूरा है। अलगोजा संयुक्त पंजाब सहित राजस्थान व मारवाड़ का भी पारंपरिक वाद्य यंत्र है। पुरुष प्रधान समाज में यह लोकसाज भी पुरुषों के ही हाथों में रहा। अनुरीत पंजाब ही नहीं बल्कि विश्व की पहली ऐसी महिला बनीं, जिन्होंने न सिर्फ अलगोजा बजाना सीखा बल्कि यादों में खोते इस साज से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की पेशकारी कर पंजाब के मनमोहक लोक संगीत को फिर से संजीवनी दी।
अनुरीत ने वर्ष 2017 में अलगोजा थामा। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अलगोजा वादक करमजीत सिंह बग्गा को अपना उस्ताद बनाया। उस्ताद बग्गा से उन्होंने अलगोजे के सुर सीखे। अनुरीत अच्छी घुड़सवार भी हैं। वह पंजाबी लोकनाच व गतका की भी माहिर हैं। उन्होंने गतके की ट्रेनिंग अपने नाना गुरप्रीत सिंह खालसा से ली। अनुरीत की माता सुखबीर पाल कौर व पिता नरिंदर नीना दोनों ही पंजाबी लोककलाओं से जुड़े हैं। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ने अनुरीत को सर्टिफिकेट, मेडल, पहचान पत्र व बैज भेजा है।
विश्व की पहली महिला अलगोजा वादक अनुरीत पाल कौर बताती हैं कि इस साज की धुन उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती थी। आखिर उन्होंने इसे सीखने का फैसला किया। उस्ताद करमजीत सिंह बग्गा से मिली शिक्षा के कारण जल्द ही वह अलगोजा बजाने में माहिर हो गईं। जब स्टेज पर परफार्म करने का मौका मिला तो यह अनुरीत के लिए खुशी का मौका था।
अनुरीत कहती हैं कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब इस लोकसाज के साथ परफार्म करती हैं तो उन्हें गर्व महसूस होता है। वह अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने उस्ताद, माता-पिता व भाइयों हरकीरत व मनदीप को देती हैं। उन्होंने कहा कि इन सब के सहयोग के बिना वह इस मुकाम को हासिल नहीं कर सकती थीं।
कैसा बना होता है अलगोजा पंजाब का लोकसाज अलगोजा, जिसे सतारा, दो-नल्ली या जोरही भी कहा जाता है। संयुक्त पंजाब सहित राजस्थान और उत्तराखंड तक में लोकसाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। बलोच और सिंधी संगीतकारों ने इसे बखूबी अपनाया। इस अलगोजे को सिंधी संगीत से उत्पन्न हुआ माना जाता है।
अनुरीत पाल कौर अलगोजे को 10 मिनट तक बिना रुके बजा सकती हैं। यह इतना आसान भी नहीं है। अलगोजा, बांसुरी जैसा वाद्य यंत्र है। बांसुरी की तरह अलगोजा भी मूलत: बांस से ही बना होता है। बांसुरी में सात स्वर होते हैं। अलगोजा में दो बांसुरियों को एक साथ बजाना होता है। प्रत्येक अलगोजे में चार स्वर होते हैं। लंबे श्वांस और सुरों की गहरी समझ के साथ अलगोजा बजाने के लिए कड़े अभ्यास की भी जरूरत है।
विस्तार
मोहाली की बेटी ने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। फेज एक की रहने वाली अनुरीत पाल कौर विश्व की पहली अलगोजा वादक महिला बन गई हैं। अनुरीत चार साल से अलगोजा बजा रही हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का लोहा मनवा चुकी हैं।
आज के कानफाड़ू संगीत के बीच भले ही पंजाब का लोकसाज अलगोजा कहीं खो गया हो लेकिन इसकी मीठी धुन के बिना पंजाबी विरसा अधूरा है। अलगोजा संयुक्त पंजाब सहित राजस्थान व मारवाड़ का भी पारंपरिक वाद्य यंत्र है। पुरुष प्रधान समाज में यह लोकसाज भी पुरुषों के ही हाथों में रहा। अनुरीत पंजाब ही नहीं बल्कि विश्व की पहली ऐसी महिला बनीं, जिन्होंने न सिर्फ अलगोजा बजाना सीखा बल्कि यादों में खोते इस साज से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की पेशकारी कर पंजाब के मनमोहक लोक संगीत को फिर से संजीवनी दी।
अनुरीत ने वर्ष 2017 में अलगोजा थामा। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अलगोजा वादक करमजीत सिंह बग्गा को अपना उस्ताद बनाया। उस्ताद बग्गा से उन्होंने अलगोजे के सुर सीखे। अनुरीत अच्छी घुड़सवार भी हैं। वह पंजाबी लोकनाच व गतका की भी माहिर हैं। उन्होंने गतके की ट्रेनिंग अपने नाना गुरप्रीत सिंह खालसा से ली। अनुरीत की माता सुखबीर पाल कौर व पिता नरिंदर नीना दोनों ही पंजाबी लोककलाओं से जुड़े हैं। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ने अनुरीत को सर्टिफिकेट, मेडल, पहचान पत्र व बैज भेजा है।
आकर्षित करती थी अलगोजे की धुन
विश्व की पहली महिला अलगोजा वादक अनुरीत पाल कौर बताती हैं कि इस साज की धुन उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती थी। आखिर उन्होंने इसे सीखने का फैसला किया। उस्ताद करमजीत सिंह बग्गा से मिली शिक्षा के कारण जल्द ही वह अलगोजा बजाने में माहिर हो गईं। जब स्टेज पर परफार्म करने का मौका मिला तो यह अनुरीत के लिए खुशी का मौका था।
अनुरीत कहती हैं कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब इस लोकसाज के साथ परफार्म करती हैं तो उन्हें गर्व महसूस होता है। वह अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने उस्ताद, माता-पिता व भाइयों हरकीरत व मनदीप को देती हैं। उन्होंने कहा कि इन सब के सहयोग के बिना वह इस मुकाम को हासिल नहीं कर सकती थीं।
कैसा बना होता है अलगोजा पंजाब का लोकसाज अलगोजा, जिसे सतारा, दो-नल्ली या जोरही भी कहा जाता है। संयुक्त पंजाब सहित राजस्थान और उत्तराखंड तक में लोकसाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। बलोच और सिंधी संगीतकारों ने इसे बखूबी अपनाया। इस अलगोजे को सिंधी संगीत से उत्पन्न हुआ माना जाता है।
अनुरीत पाल कौर अलगोजे को 10 मिनट तक बिना रुके बजा सकती हैं। यह इतना आसान भी नहीं है। अलगोजा, बांसुरी जैसा वाद्य यंत्र है। बांसुरी की तरह अलगोजा भी मूलत: बांस से ही बना होता है। बांसुरी में सात स्वर होते हैं। अलगोजा में दो बांसुरियों को एक साथ बजाना होता है। प्रत्येक अलगोजे में चार स्वर होते हैं। लंबे श्वांस और सुरों की गहरी समझ के साथ अलगोजा बजाने के लिए कड़े अभ्यास की भी जरूरत है।