सार

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलने के बाद मची उथल-पुथल बाइडन के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है। इस पूरे घटनाक्रम पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर अमेरिका के साथी देशों ने भी बाइडन पर निशाना साधा है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन
– फोटो : ANI

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को अभी सत्ता में आए महज सात महीने ही हुए हैं। इस बीच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कई नीतियों के उलट फैसले करने के लिए उनकी तारीफ हुई है। खासकर कोरोना वायरस टीकाकरण और अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने के मामले में उन्हें काफी वाहवाही मिली। हालांकि, संक्रमितों की बढ़ती संख्या और विदेश मामलों में कमजोर फैसले लेने के लिए उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ा। इस बीच अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलने के बाद मची उथल-पुथल बाइडन के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है। इस पूरे घटनाक्रम पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर अमेरिका के साथी देशों ने भी बाइडन पर निशाना साधा है।

1. अफगानिस्तान से सैनिकों की चरणबद्ध वापसी
बाइडन के वादों की बात की जाए तो चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना का निकलना सुरक्षित माहौल में और चरणबद्ध तरीके से सुनिश्चित किया जाएगा। हालांकि, अफगानिस्तान से सैनिकों के लौटने के बाद अमेरिका को काबुल एयरपोर्ट को सुरक्षित करने और अपने नागरिकों को निकालने के लिए छह हजार अतिरिक्त जवानों को भेजना पड़ा, उससे उनके दावों की पोल खुल गई।

2. अफगान सरकार और तालिबान के बीच सुलह वार्ता
बाइडन ने सत्ता में आने के बाद अफगान सरकार और तालिबान के बीच जारी वार्ता में भी अहम भूमिका निभाने और नागरिकों के लिए शांतिपूर्ण समझौता कराने की बात कही थी। राष्ट्रपति बनने के बाद भी बाइडन ने कहा था कि किसी भी परिस्थिति में अफगानिस्तान तालिबान के शिकंजे में नहीं आएगा। हालांकि, चुनाव जीतने के नौ महीने बाद ही बाइडन इन वादों को पूरा करने में असफल रहे। दोहा में दोनों पक्षों के बीच सुलह कराने में अमेरिका की नाकामी इस बात से सामने आ जाती है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद महज दो हफ्तों के अंदर ही तालिबान ने काबुल समेत अफगानिस्तान के लगभग सभी प्रांतों पर कब्जा कर लिया।

3. अफगान सेना की तैयारी और मददगारों को बसाने की तैयारी
बाइडन का एक वादा यह भी था कि वह अमेरिकी सेना की मदद से अफगान सेना को तालिबान से लड़ने में पूरी तरह सक्षम बनाएंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि मददगारों को अफगानिस्तान से निकालकर दूसरे देशों में बसाने के लिए अमेरिकी सेना को ज्यादा समय के लिए भी देश में छोड़ा जा सकता है। हालांकि, जल्दबाजी में लिए गए फैसलों और सबसे अहम बगराम बेस से सैनिकों के हटने के बाद तालिबान ने मौके का फायदा उठाया और अपने हमले तेज कर दिए। इसके चलते अमेरिका को अब अपने मददगारों के परिजनों और कई अधिकारियों को निकालने में भी समस्या आ रही है। ऐसे में काबुल एयरपोर्ट पर अमेरिका का रेस्क्यू मिशन लंबा खिंचना तय है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में अफगानिस्तान संकट को लेकर एबीसी न्यूज चैनल को इंटरव्यू दिया। जब एंकर ने उनसे अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने की योजना, अफगान नागरिकों के एयरपोर्ट पर जुटने और अमेरिकी विमानों में जबरदस्ती चढ़ने की घटनाओं को लेकर तीखे सवाल पूछे तो बाइडन ने कहा, “मुझे नहीं लगता हम किसी भी तरह से नाकाम रहे।” उन्होंने साफ कर दिया कि अफगानिस्तान में उपजे संकट के बावजूद वह अपने फैसले पर कायम रहेंगे।

राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप की कुछ विदेश नीतियों (ईरान नीति, जलवायु परिवर्तन नीति, आदि) में बदलाव के एलान के लिए जो बाइडन की दुनियाभर में तारीफ हुई थी। दूसरी तरफ हिंद-प्रशांत क्षेत्र, क्वाड गठबंधन, चीन से व्यापार और अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाने की ट्रंप की नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए भी उन्हें दूरदर्शी माना गया। हालांकि, अफगानिस्तान में मानवाधिकार संकट सामने आने के बावजूद रुख न बदलने को लेकर अमेरिका से दूसरे देशों तक बाइडेन की आलोचना हुई है।

बाइडन के आलोचकों में सबसे पहला नाम पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का है। ट्रंप ने हाल ही में कहा है कि तालिबान का विरोध किए बिना काबुल का पतन होना अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी हार के रूप में दर्ज होगा। तालिबान के काबुल में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लेने के बाद ट्रंप ने एक बयान में कहा था, “जो बाइडन ने अफगानिस्तान में जो किया वह अपूर्व है। इसे अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी हार के रूप में याद रखा जाएगा।” इसके अलावा रिपब्लिक सांसद निक्की हेली, पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और सीनेट में रिपब्लिकन के प्रमुख टेड क्रूज भी अफगानिस्तान को उथल-पुथल के माहौल में छोड़ने के लिए बाइडन की आलोचना कर चुके हैं।

अमेरिका के साथी देशों में बाइडन के खिलाफ आवाज उठाने में सबसे पहला नाम हंगरी का रहा। हंगरी ने कहा कि अमेरिका के खराब भौगोलिक फैसलों के लिए हंगरी के नागरिकों को कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। वहीं, ब्रिटेन की संसद में भी पक्ष और विपक्ष ने बाइडन के फैसलों का समर्थन करने के लिए अपने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को आड़े हाथों लिया। नाटो के साथी देशों ने भी अमेरिका की अफगानिस्तान से निकलने की जल्दबाजी को तालिबान के खिलाफ गठबंधन सेना की हार से जोड़ दिया। जर्मनी से लेकर फ्रांस तक के नेताओं ने कहा कि अफगानिस्तान से बाहर निकलने का फैसला शरणार्थी संकट बढ़ाने के साथ नाटो की शिकस्त है।

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को अभी सत्ता में आए महज सात महीने ही हुए हैं। इस बीच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कई नीतियों के उलट फैसले करने के लिए उनकी तारीफ हुई है। खासकर कोरोना वायरस टीकाकरण और अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने के मामले में उन्हें काफी वाहवाही मिली। हालांकि, संक्रमितों की बढ़ती संख्या और विदेश मामलों में कमजोर फैसले लेने के लिए उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ा। इस बीच अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलने के बाद मची उथल-पुथल बाइडन के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है। इस पूरे घटनाक्रम पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर अमेरिका के साथी देशों ने भी बाइडन पर निशाना साधा है।


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By attkley

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