सार

2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही पार्टी में विवाद की शुरुआत हो गई थी। सीएम पद के लिए सीएम भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और वरिष्ठ नेता चरणदास महंत प्रमुख दावेदार थे। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने बघेल पर विश्वास जताया…

भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव
– फोटो : Agency (File Photo)

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छत्तीसगढ़ कांग्रेस में चल रही अंदरुनी कलह अब सतह पर आ गई है। एक तरह जहां सीएम बघेल के समर्थक विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाल लिया है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव भी ढाई-ढाई साल के सीएम पद के फॉर्मूले पर अड़े हुए नजर आ रहे हैं। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं तेजी से चल रही हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर सब कुछ ठीक होने की बात दोनों गुटों की तरफ से कही जा रही है। जानकारों का कहना है कि इन दोनों खेमों में विवाद उसी दिन से शुरू हो गया था, जब राज्य की कमान भूपेश बघेल को सौंपी गई थी।

कांग्रेस की जीत के इस तरह शुरू हुआ विवाद

2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही पार्टी में विवाद की शुरुआत हो गई थी। सीएम पद के लिए सीएम भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और वरिष्ठ नेता चरणदास महंत प्रमुख दावेदार थे। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने बघेल पर विश्वास जताया। हालांकि इस दौरान ऐसी खबरें आईं कि बघेल और टीएस सिंह देव के बीच ढाई-ढाई साल के सीएम पद के फार्मूले पर सहमति बनी है। बीते दिनों जब भूपेश बघेल की सरकार ने ढाई साल का कार्यकाल पूरा किया तो एक बार फिर से ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले वाली बातें सुर्खियों में आ गईं।

डेढ़ साल से चल रहे हैं मतभेद

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के एक विश्वस्त सूत्र ने अमर उजाला को बताया, ‘राज्य में सरकार बनने के बाद से ही दोनों नेताओं के बीच रिश्ते ठीक नहीं थे। कोविड काल के दौरान स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए देव ने बहुत अच्छा काम किया। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग की कई बैठकें सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लेने लगे थे। कई बार इसकी जानकारी देव को भी नहीं होती थी। जिससे दोनों में दूरियां बढ़ती चली गईं। वहीं सीएम ने जानबूझकर कई प्रभाव वाले जिलों का प्रभार टीएस सिंह देव को दे दिया। इसके बाद से दोनों नेताओं में बातचीत लगभग बंद सी हो गई थी।’

उन्होंने आगे कहा, ‘सीएम प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद महत्वपूर्ण बैठकों में सिंह देव को आमंत्रित न करना, उनके विचारों को तवज्जो नहीं देना, सिंह देव-समर्थकों की अनदेखी करना समेत पिछले ढाई साल में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं। इधर, सिंह देव रवैया मुख्यमंत्री के फैसले को चुनौती देने वाला रहा है। कई बार वे सार्वजनिक मंचों से सरकार के फैसलों पर आपत्ति जातते थे। करीब एक महीने पहले ही ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइवेट अस्पतालों को सरकारी अनुदान देने के राज्य सरकार के फैसले से उन्होंने दूरी बना ली थी। उन्होंने साफ कहा था कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद उनसे इस बारे में कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया।’

उन्होने कहा, पार्टी और राज्य दोनों में फिलहाल भूपेश बघेल टीएस सिंह देव के मुकाबले ज्यादा मजबूत हैं। लेकिन सरगुजा इलाके में टीएस सिंह देव का दबदबा है। राज्य में बघेल की छवि आक्रमक है, जिसने भाजपा के खिलाफ चुनाव में जीत हासिल करने में बड़ी भूमिका निभाई। वहीं देव अपनी सॉफ्ट छवि की वजह से लोकप्रिय हैं। उनकी राजनीतिक कार्यशैली सबको साथ लेकर चलने की है। 2018 में मुख्यमंत्री पद का फैसला हो रहा था उस वक्त 50 से ज्यादा विधायक सिंह देव के पक्ष में थे। विधानसभा चुनाव के पहले दोनों नेताओं में दोस्ती थी। चुनाव परिणाम के बाद कुर्सी के लड़ाई में दोनों के बीच में सियासी दूरियां बढ़ गईं।

विधानसभा में हंगामे से बढ़ी खींचतान

सीएम भूपेश बघेल के करीबी और रामानुजगंज विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह के काफिले पर कुछ दिनों पहले सरगुजा क्षेत्र में पत्थर फेंके गए थे। ये वह क्षेत्र जहां सिंह देव का अच्छा खासा दबदबा है। घटना के बाद विधायक बृहस्पत सिंह ने देव के खिलाफ आरोप लगाते हुए कहा था कि देव उन पर जानलेवा हमला करा सकते हैं। विधायक के इन आरोपों से सिंहदेव इतने दुखी हुए थे कि उन्होंने आरोपों के संबंध में सरकार की ओर से सफाई आए बिना विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था।

बाद में बृहस्पत सिंह ने आरोपों के लिए सदन में माफी मांगी। सरकार की ओर से गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा सिंहदेव पर लगाए गए आरोप निराधार थे। उसके बाद ही सिंहदेव वापस लौटे। उसके बाद सिंहदेव दिल्ली जाकर अपनी बात रख आए थे। इस पूरे विवाद को सीएम भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच की तनातनी के तौर पर देखा गया।

दिल्ली दरबार में होगा फैसला

बघेल और सिंहदेव के बीच बढ़ते विवाद को देख हाल ही में राहुल गांधी ने दोनों से दिल्ली में मुलाकात की थी। मुलाकात के बाद मीडिया से चर्चा में दोनों ने ही ढाई-ढाई साल सीएम वाले फॉर्मूले की बात से इनकार किया और कहा कि पार्टी उन्हें जो जिम्मेदारी देगी, वह उसे निभाएंगे। लेकिन इसके बाद भी दोनों गुटों में कुर्सी के लिए लड़ाई जारी दिखी। अब सभी की नजर कांग्रेस हाईकमान के फैसले पर टिकी है क्या वह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन करती है या फिर दोनों के बीच चल रहे विवाद का बातचीत के जरिए समाधान निकालती है।

विस्तार

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में चल रही अंदरुनी कलह अब सतह पर आ गई है। एक तरह जहां सीएम बघेल के समर्थक विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाल लिया है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव भी ढाई-ढाई साल के सीएम पद के फॉर्मूले पर अड़े हुए नजर आ रहे हैं। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं तेजी से चल रही हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर सब कुछ ठीक होने की बात दोनों गुटों की तरफ से कही जा रही है। जानकारों का कहना है कि इन दोनों खेमों में विवाद उसी दिन से शुरू हो गया था, जब राज्य की कमान भूपेश बघेल को सौंपी गई थी।

कांग्रेस की जीत के इस तरह शुरू हुआ विवाद

2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही पार्टी में विवाद की शुरुआत हो गई थी। सीएम पद के लिए सीएम भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और वरिष्ठ नेता चरणदास महंत प्रमुख दावेदार थे। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने बघेल पर विश्वास जताया। हालांकि इस दौरान ऐसी खबरें आईं कि बघेल और टीएस सिंह देव के बीच ढाई-ढाई साल के सीएम पद के फार्मूले पर सहमति बनी है। बीते दिनों जब भूपेश बघेल की सरकार ने ढाई साल का कार्यकाल पूरा किया तो एक बार फिर से ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले वाली बातें सुर्खियों में आ गईं।



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By attkley

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