हिमांशु मिश्र, नई दिल्ली।  
Published by: Amit Mandal
Updated Sun, 12 Sep 2021 05:32 AM IST

सार

चरणबद्ध तरीके से राज्यवार नेतृत्व परिवर्तन होगा, इस संंबंध में हरियाणा-झारखंड के नतीजों के बाद बनी थी राज्यवार समीक्षा की रणनीति। 

नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा
– फोटो : PTI

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उत्तराखंड में दो बार नेतृत्व परिवर्तन के बाद कर्नाटक और अब गुजरात में बदलाव। इसकी पटकथा पिछले साल हरियाणा, झारखंड और कई अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ही लिख ली गई थी। लोकसभा का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव में बरकरार न रहने से चिंतित भाजपा नेतृत्व ने अलग-अलग राज्यों की समीक्षा कर जरूरत पड़ने पर नेतृत्व परिवर्तन की रणनीति बनाई थी।

इसी के तहत उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद अब गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि यही फार्मूला चरणबद्ध तरीके से हरियाणा, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश में भी आजमाया जाएगा। यही नहीं जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां संगठन में बदलाव किया जाएगा। पार्टी नेतृत्व को इन राज्यों में जातिगत समीकरण में फिट बैठने और जनाधार वाले नेताओं की तलाश है।

असम को छोड़ अन्य राज्य नहीं दोहरा पाए लोकसभा का प्रदर्शन
दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी नेतृत्व ने विभिन्न राज्यों में नया नेतृत्व उभारने का दांव चला। इस क्रम में हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में नेतृत्व ने नए चेहरों पर दांव लगाया। हालांकि स्थानीय नेतृत्व पार्टी के मापदंडों पर खरा नहीं उतर पाया। अपवाद स्वरूप असम को छोड़ दें तो एक भी राज्य विधानसभा चुनाव में लोकसभा का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाया। लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पांच से 19 फीसदी वोटों का नुकसान झेलना पड़ा।

पिछले साल के नतीजों ने बढ़ाई चिंता
पार्टी नेतृत्व की चिंता पिछले साल तब बढ़ी जब विधानसभा चुनाव में पार्टी को झारखंड और महाराष्ट्र में सत्ता गंवानी पड़ी। हरियाणा में पार्टी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी की मदद लेनी पड़ी। इसके बाद इसी साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी। इन सभी राज्यों में एक तथ्य समान था। किसी राज्य में पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान हासिल मत प्रतिशत को बरकरार नहीं रख पाई। हालांकि हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के नतीजों के बाद ही नेतृत्व ने राज्यवार समीक्षा कर नेतृत्व परिवर्तन की पटकथा तैयार की थी। इसके बाद जब पश्चिम बंगाल से निराशाजनक परिणाम आए तब पार्टी ने पहले से लिखी पटकथा को जमीन पर उतारना शुरू किया। इस क्रम में पहले उत्तराखंड, फिर कर्नाटक और अब गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन किया गया।

जातिगत समीकरण और जनाधार पहली शर्त
पार्टी सूत्रों का कहना है कि निकट भविष्य में कई और राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। कई राज्यों की समीक्षा हो भी चुकी है। इन राज्यों में जैसे ही जनाधार और जातिगत समीकरण में फिट नेता की तलाश पूरी होगी, नेतृत्व परिवर्तन को अमली जामा पहना दिया जाएगा। दरअसल पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि बीते कुछ सालों में राज्यों में एक ऐसा मतदाता वर्ग तैयार हुआ है जो लोकसभा चुनाव में तो मोदी के नाम पर वोट करता है, मगर विधानसभा चुनाव में स्थानीय नेतृत्व को सामने रख कर वोट देता है। ऐसे में राज्यों में जनाधार और जातीय समीकरण में फिट रहने वाले नेताओं की जरूरत है।

विस्तार

उत्तराखंड में दो बार नेतृत्व परिवर्तन के बाद कर्नाटक और अब गुजरात में बदलाव। इसकी पटकथा पिछले साल हरियाणा, झारखंड और कई अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ही लिख ली गई थी। लोकसभा का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव में बरकरार न रहने से चिंतित भाजपा नेतृत्व ने अलग-अलग राज्यों की समीक्षा कर जरूरत पड़ने पर नेतृत्व परिवर्तन की रणनीति बनाई थी।

इसी के तहत उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद अब गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि यही फार्मूला चरणबद्ध तरीके से हरियाणा, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश में भी आजमाया जाएगा। यही नहीं जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां संगठन में बदलाव किया जाएगा। पार्टी नेतृत्व को इन राज्यों में जातिगत समीकरण में फिट बैठने और जनाधार वाले नेताओं की तलाश है।

असम को छोड़ अन्य राज्य नहीं दोहरा पाए लोकसभा का प्रदर्शन

दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी नेतृत्व ने विभिन्न राज्यों में नया नेतृत्व उभारने का दांव चला। इस क्रम में हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में नेतृत्व ने नए चेहरों पर दांव लगाया। हालांकि स्थानीय नेतृत्व पार्टी के मापदंडों पर खरा नहीं उतर पाया। अपवाद स्वरूप असम को छोड़ दें तो एक भी राज्य विधानसभा चुनाव में लोकसभा का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाया। लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पांच से 19 फीसदी वोटों का नुकसान झेलना पड़ा।

पिछले साल के नतीजों ने बढ़ाई चिंता

पार्टी नेतृत्व की चिंता पिछले साल तब बढ़ी जब विधानसभा चुनाव में पार्टी को झारखंड और महाराष्ट्र में सत्ता गंवानी पड़ी। हरियाणा में पार्टी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी की मदद लेनी पड़ी। इसके बाद इसी साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी। इन सभी राज्यों में एक तथ्य समान था। किसी राज्य में पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान हासिल मत प्रतिशत को बरकरार नहीं रख पाई। हालांकि हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के नतीजों के बाद ही नेतृत्व ने राज्यवार समीक्षा कर नेतृत्व परिवर्तन की पटकथा तैयार की थी। इसके बाद जब पश्चिम बंगाल से निराशाजनक परिणाम आए तब पार्टी ने पहले से लिखी पटकथा को जमीन पर उतारना शुरू किया। इस क्रम में पहले उत्तराखंड, फिर कर्नाटक और अब गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन किया गया।

जातिगत समीकरण और जनाधार पहली शर्त

पार्टी सूत्रों का कहना है कि निकट भविष्य में कई और राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। कई राज्यों की समीक्षा हो भी चुकी है। इन राज्यों में जैसे ही जनाधार और जातिगत समीकरण में फिट नेता की तलाश पूरी होगी, नेतृत्व परिवर्तन को अमली जामा पहना दिया जाएगा। दरअसल पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि बीते कुछ सालों में राज्यों में एक ऐसा मतदाता वर्ग तैयार हुआ है जो लोकसभा चुनाव में तो मोदी के नाम पर वोट करता है, मगर विधानसभा चुनाव में स्थानीय नेतृत्व को सामने रख कर वोट देता है। ऐसे में राज्यों में जनाधार और जातीय समीकरण में फिट रहने वाले नेताओं की जरूरत है।



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