Sexual offenses victim Children: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि यौन अपराध के शिकार एक बच्चे के माता-पिता आरोपी के साथ समझौता नहीं कर सकते. न्यायमूर्ति पंकज जैन की पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (The Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम के तहत दर्ज FIR को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 11 मई को कहा कि माता-पिता को बच्चे की गरिमा से समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

क्यों नहीं किया जा सकता समझौता 

हरियाणा के सिरसा के महिला पुलिस थाना, डबवाली में 2019 में भादंवि की धारा 452 (घर में प्रवेश) और 506 (आपराधिक धमकी) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और POCSO अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत FIR दर्ज की गई थी. अदालत ने कहा कि POCSO अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज FIR को समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है. 

मुकदमे की सुनवाई में तेजी का निर्देश 

अदालत ने कहा, ‘बच्चे, या उसके माता-पिता द्वारा ऐसा कोई कदम, जो बच्चे की गरिमा से समझौता करे, उस स्थिति तक नहीं उठाया जा सकता है जहां यह अधिनियम के मूल उद्देश्य को निष्प्रभावी करता है.’ अदालत ने कहा, ‘दंड प्रक्रिया की धारा 482 (एक प्राथमिकी रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय की शक्तियां) के तहत दिए गए अधिकार का प्रयोग संवैधानिक जनादेश के निर्वहन में अधिनियमित कानून के उद्देश्य के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संधियों से उत्पन्न दायित्व को नाकाम करने के लिए नहीं किया जा सकता है.’ अदालत ने संबंधित निचली अदालत को मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाने और 6 महीने की अवधि के भीतर इसे समाप्त करने का भी निर्देश दिया. 

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माता पिता नहीं कर सकते गरिमा से समझौता

अदालत ने कहा, ‘बच्चे (बच्चे के बालिग होने तक) द्वारा स्वयं निष्पादित कोई भी अनुबंध/समझौता वर्तमान मामले में अमान्य होगा और इस प्रकार इसे वैधता प्रदान नहीं की जा सकती है.’ न्यायमूर्ति जैन ने कहा, ‘माता-पिता को एक अनुबंध के माध्यम से बच्चे की गरिमा से समझौते की इजाजत नहीं दी जा सकती.’ (इनपुट: भाषा)

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By attkley

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