महाराष्ट्र में आज मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित कर दिया। शिंदे के पक्ष में 164 मत पड़े, जबकि विपक्ष में 99 विधायकों ने वोट डाला। 22 विधायक वोटिंग के लिए नहीं पहुंचे। इनमें सबसे ज्यादा कांग्रेस के 10 विधायक हैं। इसके अलावा एनसीपी, सपा और एआईएमआईएम के विधायक भी वोटिंग से दूर रहे। हालांकि, सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस विधायकों के गायब होने की हो रही है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण जैसे दिग्गज भी शामिल हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस के ये विधायक पाला बदलने की सोच रहे हैं? पार्टी के सख्त आदेश के बावजूद आखिर क्यों इन्होंने वोट नहीं डाला? क्या हैं इसके सियासी मायने? आइए जानते हैं…
पहले जानिए कौन-कौन से विधायक वोटिंग से दूर रहे?
कांग्रेस के जिन 10 विधायकों ने फ्लोर टेस्ट में हिस्सा नहीं लिया, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, जितेश अंतापुरकर, जीशान सिद्दीकी, प्रणति शिंदे, विजय वडेट्टीवार, धीरज देशमुख, कुणाल पाटिल, राजू आवाले, मोहनराव हम्बर्दे और शिरीष चौधरी शामिल हैं।
इसमें अशोक चव्हाण खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा प्रणति शिंदे ने भी वोट नहीं डाला। प्रणति सुशील शिंदे की बेटी हैं। सुशील शिंदे भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मनमोहन सिंह सरकार में वह केंद्रीय गृह मंत्री भी रहे हैं।
वोटिंग के दौरान विधानसभा से गैर हाजिर रहने वालों में तीसरा सबसे बड़ा नाम धीरज देशमुख का है। धीरज देशमुख महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे विलासराव देशमुख के बेटे हैं। वहीं, विजय वडेट्टीवार महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे।
इनके अलावा एनसीपी के अन्ना बंसोडे, संग्राम जगताप ने भी वोटिंग से दूरी बनाए रखी। समाजवादी पार्टी के दो और एआईएमआईएम के एक विधायक ने भी वोट नहीं डाला। इसके अलावा वोटिंग के दौरान गैर हाजिर रहे सात अन्य विधायकों के नाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। वहीं, एनसीपी के दो विधायक जेल में हैं। ये भी वोट नहीं डाल पाए।
वोटिंग से गैर हाजिर रहने का क्या है सियासी मायने?
ये समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव से बात की। उन्होंने कहा, ‘जरूरी नहीं कि वोटिंग से गैर हाजिर रहने का ये मतलब है कि सभी पार्टी से बगावत करने की ही सोच रहे हों। हां, अचानक अशोक चव्हाण, विजय वडेट्टीवार, मोहनराव हम्बर्दे, प्रणति शिंदे, धीरज देशमुख जैसे दिग्गज नेताओं का गायब होना जरूर संदेह पैदा करता है। इनमें से कई नेता विधानसभा पहुंचे, लेकिन तब तक वोटिंग प्रक्रिया आधी से ज्यादा पूरी हो चुकी थी। यह भी एक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। अशोक चव्हाण पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्हें सारे नियम मालूम हैं। इसी तरह विजय वडेट्टीवार भी उद्धव सरकार में मंत्री रहे। प्रणति और धीरज पूर्व मुख्यमंत्रियों के बच्चे हैं। ज्यादातर को विधानसभा की कार्रवाई का नियम मालूम है। इसके बावजूद देरी से पहुंचना सवाल खड़ा करने के लिए काफी है।’
अशोक आगे कहते हैं, ‘लंबे समय से कांग्रेस और एनसीपी के कई विधायक नाराज बताए जा रहे थे। कांग्रेस की घटती लोकप्रियता के चलते कई विधायक अपने भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं। ऐसे में संभव है कि इनमें से कुछ विधायक आने वाले समय में खुद की राजनीति बचाए रखने के लिए शिवसेना या फिर भाजपा का दामन थाम लें।’
आज फ्लोर टेस्ट में क्या हुआ?
एकनाथ शिंदे को बहुमत साबित करने के लिए विधायकों के 144 मत चाहिए थे। पहले फ्लोर टेस्ट ध्वनि मत के जरिए होना था, लेकिन विपक्ष के हंगामे के चलते नहीं हो पाया। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने हेड काउंट के जरिए मतदान कराया। इसमें विधानसभा के एक-एक सदस्य से पूछा गया कि वह किसके साथ हैं? इस वोटिंग में एकनाथ शिंदे के पक्ष में 164 विधायकों ने वोट डाला। विपक्ष में केवल 99 वोट ही पड़े।