Presidential Election:  ज्ञानी जैल का कार्यकाल खत्म होने को आ रहा था. राजीव गांधी सरकार के साथ उनके संबंध अच्छे नहीं थे. यूं तो राष्ट्रपति चुनाव हर 5 साल में होता है. कई बार तो चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन कई बार मजबूत विपक्ष दांव चलने से भी पीछे नहीं रहता. 1987 में भी कुछ ऐसा ही हुआ. ज्ञानी जैल सिंह के साथ तनातनी के कारण राजीव गांधी की कुर्सी भी खतरे में नजर आ रही थी.

नेता मानकर चल रहे थे कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बीच ही सारी जोर आजमाइश हो जाएगी और कांग्रेस को अपने उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनवाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. ये उम्मीदवार थे तत्कालीन उपराष्ट्रपति आर वेंकटरमन. लेकिन विपक्ष भी उस दौरान चुप नहीं बैठ रहा था. विपक्षी नेता कांग्रेस की ही जमीन दरकाने में जुट गए. लेकिन उनको निराशा हाथ लगी. उम्मीदवार ही नहीं चुन पाए. फिर उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह को चुना, जिनका राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने लगा था.  

कांग्रेस के नेताओं ने विपक्ष की इस चाल को समझ लिया. फिर क्या था. राष्ट्रपति से बड़े नेताओं से मुलाकात का सिलसिला चल निकला. हरियाणा के कद्दावर नेता रहे लोकदल (बी) के देवी लाल ने भी जैल सिंह का समर्थन कर दिया. दिल्ली में लोकसभा के 40 और राज्यों के नेताओं की फौज जुट गई.

ज्ञानी जैल सिंह ने सबसे मुलाकात तो की. लेकिन कह दिया कि उन्हें सोचने के लिए कुछ समय चाहिए.  लेकिन शायद जैल सिंह फैसला कर चुके थे. उन्होंने दोबारा राष्ट्रपति चुनाव में उतरने से मना कर दिया. इस तरह कांग्रेस में विद्रोह होते-होते रह गया. जी न्यूज की खास सीरीज महामहिम में आज हम बात करेंगे रामस्वामी वेंकटरमण की, जो 1987 से 1992 तक भारत के आठवें राष्ट्रपति रहे.

आर वेंकटरमन की शख्सियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकील थे. कम उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे और भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा रहे. इतना ही नहीं उन्हें संविधान सभा और अनंतिम कैबिनेट का सदस्य नियुक्त किया गया था. वे 4 बार लोकसभा के लिए चुने गए. वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री भी रहे. 1984 में वे भारत के सातवें उपराष्ट्रपति चुने गए. ये आंकड़े किसी मामूली शख्स के नहीं हो सकते. इसलिए आर वेंकटरमन के किस्से जानना बेहद जरूरी है.

इतिहास के पन्ने पलटते हैं…

वक्त का पहिया तो पीछे नहीं घुमाया जा सकता इसलिए इतिहास को जानने के लिए उसके पन्ने पलटने पड़ते हैं. 4 दिसंबर 1910 को तमिलनाडु में तंजौर जिले के पास पट्टुकोट्टई के राजामदम गांव में एक अय्यर परिवार में पैदा हुए थे रामस्वामी वेंकटरमन. राजामदम गांव में उनका एक करीबी दोस्त था जिसका नाम राजामदम कन्नन अयंगर था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा गवर्नमेंट बॉयज़ हायर सेकेंडरी स्कूल, पट्टुकोट्टई और अंडरग्रेजुएट नेशनल कॉलेज, तिरुचिरापल्ली में की थी.

पढ़ने लिखने में वेंकटरमन बहुत होशियार थे. इसलिए चेन्नई (तब मद्रास) के लोयोला कॉलेज से वेंकटरमन ने इकोनॉमिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की. बाद में उन्होंने मद्रास के लॉ कॉलेज, मद्रास से लॉ में क्वालीफाई किया. अपनी काबिलियत के दम पर साल 1935 में मद्रास हाई कोर्ट और 1951 में सुप्रीम कोर्ट में नामांकित हुए.

वकालत से आजादी की लड़ाई में कूदे

वकालत करते हुए वेंकटरमन आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. इसकी वजह से उन्हें दो साल के लिए हिरासत में लिया गया. वेंकटरमन ने इस दौरान भी वकालत जारी रखी. वकालत और व्यापार के कारण उनका राजनीति के साथ रिश्ता और गहरा होता चला गया. वह उस संविधान सभा के भी सदस्य थे, जिसने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया था.

1950 में, उन्हें स्वतंत्र भारत की अनंतिम संसद (1950-1952) और पहली संसद (1952-1957) के लिए चुना गया था. विधायी गतिविधि के अपने कार्यकाल के दौरान, वेंकटरमण ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की धातु व्यापार समिति के 1952 के सत्र में एक श्रमिक प्रतिनिधि के तौर पर हिस्सा लिया. वह न्यूजीलैंड में राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे. इसके अलावा वह 1953-1954 में कांग्रेस संसदीय दल के सचिव भी थे.

सांसदी छोड़ बने मंत्री

साल 1957 में वह दोबारा संसद के लिए चुने गए लेकिन उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और मद्रास सरकार में मंत्री बन गए. उन्होंने 1957 से 1967 के बीच इंडस्ट्रीज, लेबर, कॉपरेशन पावर, ट्रांसपोर्ट एंड कमर्शियल टैक्स जैसे विभाग संभाले. इस दौरान, वह उच्च सदन यानी मद्रास विधान परिषद के नेता भी थे.

वेंकटरमन को 1967 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया और उन्हें उद्योग, श्रम, बिजली, परिवहन, संचार, रेलवे जैसे पोर्टफोलियो मिले. 1971 तक वह उस पद पर रहे. इसके बाद 1977 में, वेंकटरमन मद्रास (साउथ) लोकसभा क्षेत्र से चुने गए और संसद के विपक्षी सदस्य और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष भी रहे. इसके अलावा उन्होंने गवर्नर, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, इंटरनेशनल बैंक फॉर रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवेलपमेंट और एशियन डेवेलपमेंट बैंक में भी काम किया.

जब मिला वित्त-रक्षा मंत्री का प्रभार

साल 1980 में वेंकटरमन दोबारा राज्यसभा के लिए चुने गए और उन्हें इंदिरा गांधी सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया. बाद में उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया. यहां से उन्होंने वो काम किया, जिसके लिए भारत की सूरत हमेशा के लिए बदल गई. भारत के मिसाइल प्रोग्राम को शुरू करने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है. उन्होंने महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम का स्पेस प्रोग्राम से तबादला किया और मिसाइल प्रोग्राम में शिफ्ट कर दिया. पूरे मिसाइल प्रोग्राम को वो एक जगह लाए और उसे इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवेलपमेंट प्रोग्राम नाम दिया.

बाद में वह भारत के उपराष्ट्रपति बने और फिर आया राष्ट्रपति चुनाव का दौर. जब ज्ञानी जैल सिंह ने विपक्ष का उम्मीदवार बनने से मना कर दिया तो वेंकटरमन के राष्ट्रपति चुने जाने में कोई रुकावट ही नहीं बची. हालांकि वामपंथी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वीआर कृष्ण अय्यर को वेंकटरमन के सामने उतारा था. लेकिन वह टिक नहीं सके. वेंकटरमन को जहां 7 लाख 40 हजार 148 वोट मिले. वहीं अय्यर को 2 लाख 81 हजार 550 वोट. वेंकटरमन ने 25 जुलाई 1987 को देश के आठवें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 4 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया और तीन की नियुक्ति की. ये प्रधानमंत्री थे-वीपी सिंह, चंद्र शेखर और पीवी नरसिम्हा राव.

1988 में वीपी सिंह पीएम बने लेकिन 1989 में उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद चंद्रशेखर को शपथ दिलवाई. लेकिन देश में मध्यावधि चुनाव हो गए और पीवी नरसिम्हा राव पीएम बने. एक समय ऐसा भी लगने लगा था कि दूसरी बार भी वह राष्ट्रपति बन सकते हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 27 जनवरी, 2009 को वेंकटरमन का 98 साल की उम्र में निधन हो गया.

राज कपूर के लिए तोड़ दिया था प्रोटोकॉल

आमतौर पर राष्ट्रपति प्रोटोकॉल को लेकर बेहद सख्त होते हैं. लेकिन आर वेंकटरमन इस मामले में अलग थे. लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था,जब उन्होंने राजकपूर के लिए प्रोटोकॉल तोड़ दिया था. ये किस्सा बड़ा मशहूर है. 1988 में राजकपूर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाना था. तब राजकपूर की तबीयत ठीक नहीं थी. लेकिन तब भी वो अवॉर्ड लेने दिल्ली आ गए. जब अवॉर्ड लेने पहुंचे तो राजकपूर ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ चेयर पर बैठे थे. जब नाम का ऐलान हुआ तो उन्होंने कुर्सी से उठने की कोशिश की लेकिन वह ऐसा कर न सके. वेंकटरमन ने तुरंत स्थिति को पहचान लिया और खुद चलकर उन्हें अवॉर्ड देने पहुंच गए.

जी न्यूज की अगली सीरीज में हम आपको बताएंगे शंकर दयाल शर्मा के बारे में, जिनके राष्ट्रपति बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

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By attkley

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