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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान नारी सम्मान की बात कही थी। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भी महिलाओं के सम्मान और सशक्तीकरण पर जोर दिया है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय परिवार व्यवस्था की सराहना करते हुए बुधवार को कहा कि महिलाओं का सम्मान और सशक्तीकरण घर से शुरू होना चाहिए और उन्हें समाज में उनका उचित स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं को ‘जगत जननी’ कहा जाता है, लेकिन उनके घरों में उन्हें ‘गुलाम’ माना जाता है।
भागवत नागपुर में ‘अखिल भारतीय महिला चरित्र कोष प्रथम खंड’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने भारत के ‘विश्व गुरु’ बनने के सपने को साकार करने में महिलाओं के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ‘अगर हम एक विश्व गुरु के रूप में भारत का निर्माण करना चाहते हैं तो सिर्फ पुरुषों की भागीदारी ही काफी नहीं है, बल्कि महिलाओं की समान भागीदारी की भी आवश्यकता है।’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारतीय महिलाओं की स्थिति पर एक सामान्य बयान देना बहुत मुश्किल है। “हर किसी की एक अलग स्थिति और पृष्ठभूमि होती है और साथ ही इन समस्याओं के लिए अलग-अलग समस्याएं और समाधान होते हैं।” भागवत ने कहा कि प्राचीन काल से इस बात पर कोई तर्क नहीं हुआ है कि पुरुष और महिला में कौन श्रेष्ठ है क्योंकि दोनों समान हैं और उन्हें साथ रहना है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में जो लोग मूल्यों, विवाह, महिलाओं की स्वतंत्रता और परिवार की आलोचना करते हैं, वे आज भारतीय परिवार व्यवस्था पर शोध कर रहे हैं। आरएसएस नेता ने कहा, “जो हम हजारों सालों से (भारतीय परिवार व्यवस्था के गुणों के बारे में) कह रहे हैं, वे अब इसके बारे में बात कर रहे हैं।”
भागवत ने कहा कि यह सोचने का समय है कि महिलाओं को उनके घरों में उनका सही स्थान दिया जा रहा है या नहीं। आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘एक तरफ हम उन्हें जगत जननी के रूप में मानते हैं, लेकिन दूसरी तरफ हम उन्हें घर में “गुलामों’ की तरह मानते हैं। हमें महिलाओं को अच्छा वातावरण देने की जरूरत है। महिलाओं को प्रबुद्ध, सशक्त और शिक्षित किया जाना चाहिए और यह प्रक्रिया घर से शुरू होनी चाहिए।’