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जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया में दिखने लगा है। खासकर यूरोप में अब इसका सबसे बुरा प्रभाव दिख रहा है। यह पूरा महाद्वीप 500 साल के अपने सबसे बुरे सूखे की तरफ बढ़ रहा है। यहां तक कि आमतौर पर बारिश से भीगा रहने वाला इंग्लैंड तक सूखे से गुजर रहा है। यहां सरकार ने इतिहास में पहली बार आधिकारिक तौर पर सूखे से गुजरने का एलान किया। इससे पहले फ्रांस और स्पेन के नेताओं ने भी कहा कि उनका देश अब तक की सबसे खतरनाक सूखे की स्थिति से गुजर रहा है। 

रिपोर्ट्स की मानें तो यूरोप में पिछले दो महीने से खास बारिश नहीं हुई, जिसके कारण आगे भी स्थिति के सुधरने की कोई खास उम्मीद नजर नहीं आ रही। इतना ही नहीं अमेरिका के कई राज्य भी पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। इनमें कैलिफोर्निया से लेकर हवाई जैसे राज्य भी शामिल हैं। इस बीच अमर उजाला आपको बता रहा है कि यूरोप में इस बार का सूखा कितना गंभीर है? कौन से देशों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव है? पिछले दशकों के मुकाबले इस दशक में सूखे की स्थिति क्या है? इसके अलावा कौन से देशों और उद्योगों को इसके चलते सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है?
यूरोप में कहां-कहां पड़ा सबसे खराब सूखा?

1. पीने के पानी की कमी कहां?
वैसे तो लगभग पूरे यूरोप में ही स्थिति काफी खराब है। लेकिन फ्रांस और स्पेन में बारिश की कमी और जंगलों में लगी आग की वजह से सूखे की स्थिति पैदा हो रही है। वहीं ब्रिटेन में तापमान लगातार रिकॉर्ड तोड़ रहा है। पिछले महीने ही इंग्लैंड में इतिहास का सबसे ज्यादा तापमान (जबसे तापमान दर्ज करना शुरू किया गया) रिकॉर्ड किया गया था। इसके चलते यहां लोगों के पास पीने के पानी तक की कमी पैदा हो गई है। 

यूरोपियन कमीशन (ईसी) के जॉइंट रिसर्च सेंटर ने पिछले हफ्ते एलान किया है कि यूरोपीय संघ का लगभग आधा क्षेत्र और यूनाइटेड किंगडम का पूरा भूमिगत क्षेत्र सूखे की चपेट में है। इस साल की शुरुआत से ही यूरोप में सूखे की स्थिति पैदा होने लगी थी। इसके बाद सर्दियों और वसंत के मौसम में पूरे महाद्वीप के ऊपर वायुमंडल में पानी की करीब 19 फीसदी कमी देखी गई। बीते 30 वर्षों में यह पांचवां मौका है, जब यूरोप में औसत से कम बारिश दर्ज की गई। इसके अलावा महाद्वीप तेज गर्मी और लू जैसी स्थितियों ने बारिश में कमी के असर को दोगुना कर दिया। मौजूदा समय में यूरोप का 10 फीसदी हिस्सा हाई अलर्ट पर है। 

2. पेड़-पौधों का अस्तित्व कहां खतरे में?
यूरोप के जिन हिस्सों पर सूखे का सबसे बुरा असर देखा जा रहा है, उनमें मध्य और दक्षिण यूरोप शामिल हैं। यहां बारिश की कमी की वजह से जमीन में पानी भी काफी निचले स्तर पर चला गया है। आलम यह है कि पेड़-पौधे भी जमीन से पानी नहीं ले पा रहे और इनका सूखना जारी है। मध्य जर्मनी, पूर्वी हंगरी, इटली के निचले इलाके, दक्षिण-केंद्रीय और पश्चिमी फ्रांस, पुर्तगाल और उत्तरी स्पेन में तो कई पेड़-पौधों के अस्तित्व पर भी खतरा पैदा हो गया है। 
3. कहां सूखने के कगार पर जलस्रोत?
इटली का पो नदी घाटी, जिसे देश के लिए सबसे अहम पानी का स्रोत माना जाता है, बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसके चलते पांच क्षेत्रों में सूखे का आपात घोषित किया गया और लोगों के पानी के इस्तेमाल पर भी पाबंदियां लगाई गई हैं। इसी तरह के कुछ कदम फ्रांस में भी उठाए गए हैं। उधर स्पेन का आइबेरियन प्रायद्वीप के जल भंडार भी 10 साल के औसत से 31 फीसदी निचले स्तर पर हैं। 
4. बिजली की कमी?
ब्रिटेन और यूरोप के जलस्रोतों में पानी की कमी का असर अब इन देशों की ऊर्जा उत्पादन क्षमता पर भी पड़ रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो अक्षय स्रोतों से बिजली पैदा करने पर निर्भर कई यूरोपीय देशों को बिजली की कमी का सामना करना पड़ेगा। हाइड्रोपावर क्षेत्र में इस वक्त ऊर्जा उत्पादन 20 फीसदी तक नीचे गिरा है। उधर परमाणु संयंत्रों से भी ऊर्जा उत्पादन काफी कम हो गया है, क्योंकि इन प्लांट्स को ठंडा रखने के लिए नदी के पानी की जरूरत होती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच जब ब्रिटेन-यूरोप खुद ऊर्जा की पैदावार बढ़ाकर आत्मनिर्भर होने की कोशिश में हैं, ठीक उसी वक्त पानी की कमी उसके इरादों पर पानी फेर सकता है। 
5. किन देशों में कृषि क्षेत्र पर असर?
यूरोप में पड़ रही इस भीषण गर्मी का असर उसकी खाद्यान्न आपूर्ति पर भी पड़ने की संभावना है। दरअसल, महाद्वीप के कई बड़े देशों में सूखे जैसी स्थिति पैदा होने की वजह से कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सबसे बुरी हालत रोमानिया, पोलैंड, स्लोवेनिया और क्रोएशिया की है। यहां पानी की कमी के चलते इस बार फसलों की पैदावार कम रहने के आसार हैं। जॉइंट रिसर्च सेंटर के मुताबिक, इन देशों में पानी और ऊर्जा संरक्षण के आपात कदम उठाने जरूरी होंगे।
बीते दशक के मुकाबले इस साल कितनी गंभीर है सूखे की समस्या?
इस साल सूखे की अवधि और इसके फैलाव का दायरा देखा जाए तो महाद्वीप का यह सूखा 70 साल में सबसे भयानक है। सूखे पर निगरानी रखने वाली यूरोप की संस्था- यूरोपियन ड्रॉट ऑब्जर्वेटरी के मुताबिक, बीते दशक के मुकाबले इस साल सूखा ज्यादा क्षेत्र में फैला है। इसके अलावा जुलाई 2012, 2015, 2018 के मुकाबले इस साल पेड़-पौधों के सूखने और मिट्टी की नमी में कमी भी काफी ज्यादा है। 

दूसरी तरफ स्कैंडिनिवियन देशों (डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड और आइसलैंड) की हालत इस बार पिछले दशक के मुकाबले ज्यादा नहीं बिगड़ी है। जबकि 2018 में इस क्षेत्र ने सात दशकों का सबसे बड़ा सूखा झेला था। हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर 2018 में यूरोप के कुछ क्षेत्रों में पड़े सूखे के 2022 के हालात से तुलना करें तो यह साल सबसे बुरे सूखे से गुजरने वाला है। 

सूखे से यूरोपीय संघ और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कैसे प्रभावित?
जलवायु परिवर्तन किस तरह देशों की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है, इसका उदाहरण 2022 की एनवॉयरमेंट रिसर्च लेटर्स की रिपोर्ट में मिलता है। खासकर भीषण गर्मी की वजह से फसल के नुकसान और सूखे की बात करें तो पिछले 50 वर्षों में यह तीन गुना हो गया है। 1998 से 2017 के बीच तो सूखे और फसलों के खराब होने से यूरोप-ब्रिटेन को 124 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। 

पिछले साल प्रकाशित हुई एक रिसर्च के मुताबिक, भीषण गर्मी की वजह से यूरोप और ब्रिटेन इस वक्त सालाना 9 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान उठा रहे हैं। अगर तापमान आने वाले 10 वर्षों में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तो यूरोप-ब्रिटेन का हर वर्ष करीब 10 अरब डॉलर का नुकसान होगा। इतना ही नहीं, अगर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कदम नहीं उठाए गए और सन 2100 तक तापमान 4 डिग्री तक बढ़ गया, तो यूरोप-ब्रिटेन को हर महीने 65.5 अरब डॉलर का नुकसान होगा। 
यूरोप में सूखे की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान स्पेन को होने की संभावना है। इस देश को हर साल गर्मी की मार के चलते 1.52 अरब डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इटली और फ्रांस क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जहां इटली को 1.43 अरब डॉलर, वहीं फ्रांस को हर साल 1.24 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा जर्मनी को हर साल 1.022 अरब डॉलर का नुकसान उठा रहा है। पांचवें स्थान पर ब्रिटेन है, जिसकी अर्थव्यवस्था को 70.4 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है।

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जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया में दिखने लगा है। खासकर यूरोप में अब इसका सबसे बुरा प्रभाव दिख रहा है। यह पूरा महाद्वीप 500 साल के अपने सबसे बुरे सूखे की तरफ बढ़ रहा है। यहां तक कि आमतौर पर बारिश से भीगा रहने वाला इंग्लैंड तक सूखे से गुजर रहा है। यहां सरकार ने इतिहास में पहली बार आधिकारिक तौर पर सूखे से गुजरने का एलान किया। इससे पहले फ्रांस और स्पेन के नेताओं ने भी कहा कि उनका देश अब तक की सबसे खतरनाक सूखे की स्थिति से गुजर रहा है। 

रिपोर्ट्स की मानें तो यूरोप में पिछले दो महीने से खास बारिश नहीं हुई, जिसके कारण आगे भी स्थिति के सुधरने की कोई खास उम्मीद नजर नहीं आ रही। इतना ही नहीं अमेरिका के कई राज्य भी पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। इनमें कैलिफोर्निया से लेकर हवाई जैसे राज्य भी शामिल हैं। इस बीच अमर उजाला आपको बता रहा है कि यूरोप में इस बार का सूखा कितना गंभीर है? कौन से देशों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव है? पिछले दशकों के मुकाबले इस दशक में सूखे की स्थिति क्या है? इसके अलावा कौन से देशों और उद्योगों को इसके चलते सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है?



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By attkley

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