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गूगल और फेसबुक से समाचार प्रकाशकों की संयुक्त बातचीत आसान बनाने के लिए अमेरिका ने सोमवार को अपने एक विधेयक का संशोधित प्रारूप पेश किया। इसे यहां के दोनों दलों के सांसदों ने तैयार किया है। माना जा रहा है कि इससे वार्ता में विशाल टेक कंपनियों के मुकाबले समाचार प्रकाशक अपना पक्ष और मजबूती से रख पाएंगे। 

उल्लेखनीय है कि अमेरिका जर्नलिज्म कंपटीशन एंड प्रिजर्वेशन एक्ट ला रहा है। ताजा संशोधन से समाचार संस्थानों के लिए इन विशाल टेक कंपनियों से एक साथ बातचीत करना संभव होगा। इससे वे अपनी उचित शर्तों को मनवा सकेंगे।

अमेरिका सहित विश्व के सभी देशों में समाचार प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित खबरों को अब तक गूगल, फेसबुक की मालिकाना कंपनी मेटा और अन्य टेक कंपनियां बिना कोई पैसा दिए उपयोग कर रही हैं।

वे इनसे हजारों करोड़ का मुनाफा भी कमा रही हैं। यह बिल लाया जा रहा है, ताकि टेक व सोशल मीडिया कंपनियां इन सामग्री का उपयोग करने पर समाचार प्रकाशकों को राजस्व में से हिस्सेदारी देने में बाध्य हों।

 1,500 से कम कर्मचारी वाले संस्थान भी शामिल
पुराने विधेयक में छोटे समाचार संस्थान शामिल नहीं थे, लेकिन संशोधन के बाद 1,500 से कम कर्मचारी संख्या वाले संस्थानों को भी कवर किया गया है।

विरोध में खड़े गूगल-मेटा
अपने एकाधिकार को सरकार से मिली हर चुनौती का विरोध करते आए गूगल और मेटा ने इस विधेयक का भी विरोध किया है। उन्होंने अमेरिका में कंप्यूटर एंड कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन खड़ी कर ली है। नेटचॉइस नाम से भी एक अन्य उद्योग समूह बनाया है। इन दोनों ने अमेरिकी सरकार की मंशा का विरोध किया है।

दूसरी ओर विधेयक पर डेमोक्रेट सीनेटर एमी क्लोबूचर, रिपब्लिकन सीनेटर जॉन कैनेडी काम कर रहे हैं, जो यहां की न्यायिक समिति के भी सदस्य हैं। हाउस की न्यायिक समिति के सदस्य डेमोक्रेट डेविड सिसिलियन और रिपब्लिकन केन बुक भी इसमें शामिल हैं।

डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन ने किया स्वागत
भारत के मीडिया संस्थानों के संगठन डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) ने अमेरिका में विधेयक लाए जाने का स्वागत किया। डीएनपीए के एक सूत्र की तरफ से कहा गया, “काफी अच्छी बात है कि अमेरिकी सांसद गूगल जैसी बड़ी एकाधिकार वाली कंपनियों की क्षमताओं को सीमित करने पर काम कर रहे हैं। “

बिग टेक को पारदर्शी, समावेशी और अनुकूल बनाने का कर रहे प्रयास : डीएनपीए
डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन के सूत्रों ने कहा कि हम बड़ी तकनीक के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हमें राजस्व के उचित वितरण की आवश्यकता है। एक अन्य सदस्य ने कहा, “यह सही दिशा में एक बड़ा कदम है। यह भारत में हमारे रुख की पुष्टि करता है क्योंकि हम राजस्व-साझाकरण के मामले में बिग टेक को अधिक पारदर्शी, समावेशी और अनुकूल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।” 

गौरतलब है कि डीएनपीए पिछले दो वर्षों से अल्फाबेट की गूगल को और अधिक पारदर्शी बनाने को लेकर चर्चा कर रहा है। खासकर उसके भारत के डिजिटल मीडिया संस्थानों से राजस्व साझा करने के विवादित मॉडल पर।

इस साल की शुरुआत में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने गूगल के डिजिटल न्यूज संस्थानों से राजस्व साझा करने के गलत तरीकों के खिलाफ जांच शुरू की थी। सीसीआई की जांच डीएनपीए की ओर से की गई शिकायतों के बाद ही शुरू हुई थी।

अमेरिका में लाए गए विधेयक में क्या?
अमेरिकी विधेयक के संशोधित संस्करण को पत्रकारिता प्रतिस्पर्धा और संरक्षण अधिनियम करार दिया गया है। अमेरिकी सांसद कहते हैं कि यह समाचार संगठनों की सामूहिक रूप से बातचीत करने की क्षमता देने के लिए कानूनी बाधाओं को दूर करता है और गेटकीपर प्लेटफॉर्म से उचित शर्तों को सुरक्षित करता है, जो नियमित रूप से इसके मूल्य के भुगतान के बिना समाचार सामग्री का उपयोग करते हैं। 

भारत में गतिविधियों की जानकारी दे रहीं बिग टेक कंपनियां
अमेरिका से यह खबर ऐसे समय में सामने आई है, जब कई बिग टेक दिग्गज भारत में एक संसदीय पैनल के सामने अपनी गतिविधियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। प्रतिस्पर्धा रोधी प्रथाओं की जांच कर रही संसदीय समिति के सामने मंगलवार को एपल, गूगल, अमेजन, नेटफ्लिक्स और माइक्रोसॉफ्ट की भारतीय शाखाओं के शीर्ष अधिकारी पेश हुए। बैठक के दौरान, वित्त पर संसदीय पैनल के कई सदस्यों ने बड़ी तकनीकी कंपनियों के बाजार प्रभुत्व पर सवाल उठाया। 

समिति के अध्यक्ष जयंत सिन्हा ने बैठक के बाद कहा कि संसदीय पैनल डिजिटल बाजारों के लिए प्रतिस्पर्धा कानून के विकास पर एक रिपोर्ट जारी करेगा। यही वह रिपोर्ट है जिसे हम एक साथ रख रहे हैं। हम विशेष रूप से प्रतिस्पर्धी आचरण और प्रतिस्पर्धी व्यवहार से संबंधित मामलों से निपटेंगे।

विस्तार

गूगल और फेसबुक से समाचार प्रकाशकों की संयुक्त बातचीत आसान बनाने के लिए अमेरिका ने सोमवार को अपने एक विधेयक का संशोधित प्रारूप पेश किया। इसे यहां के दोनों दलों के सांसदों ने तैयार किया है। माना जा रहा है कि इससे वार्ता में विशाल टेक कंपनियों के मुकाबले समाचार प्रकाशक अपना पक्ष और मजबूती से रख पाएंगे। 

उल्लेखनीय है कि अमेरिका जर्नलिज्म कंपटीशन एंड प्रिजर्वेशन एक्ट ला रहा है। ताजा संशोधन से समाचार संस्थानों के लिए इन विशाल टेक कंपनियों से एक साथ बातचीत करना संभव होगा। इससे वे अपनी उचित शर्तों को मनवा सकेंगे।

अमेरिका सहित विश्व के सभी देशों में समाचार प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित खबरों को अब तक गूगल, फेसबुक की मालिकाना कंपनी मेटा और अन्य टेक कंपनियां बिना कोई पैसा दिए उपयोग कर रही हैं।

वे इनसे हजारों करोड़ का मुनाफा भी कमा रही हैं। यह बिल लाया जा रहा है, ताकि टेक व सोशल मीडिया कंपनियां इन सामग्री का उपयोग करने पर समाचार प्रकाशकों को राजस्व में से हिस्सेदारी देने में बाध्य हों।

 1,500 से कम कर्मचारी वाले संस्थान भी शामिल

पुराने विधेयक में छोटे समाचार संस्थान शामिल नहीं थे, लेकिन संशोधन के बाद 1,500 से कम कर्मचारी संख्या वाले संस्थानों को भी कवर किया गया है।

विरोध में खड़े गूगल-मेटा

अपने एकाधिकार को सरकार से मिली हर चुनौती का विरोध करते आए गूगल और मेटा ने इस विधेयक का भी विरोध किया है। उन्होंने अमेरिका में कंप्यूटर एंड कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन खड़ी कर ली है। नेटचॉइस नाम से भी एक अन्य उद्योग समूह बनाया है। इन दोनों ने अमेरिकी सरकार की मंशा का विरोध किया है।

दूसरी ओर विधेयक पर डेमोक्रेट सीनेटर एमी क्लोबूचर, रिपब्लिकन सीनेटर जॉन कैनेडी काम कर रहे हैं, जो यहां की न्यायिक समिति के भी सदस्य हैं। हाउस की न्यायिक समिति के सदस्य डेमोक्रेट डेविड सिसिलियन और रिपब्लिकन केन बुक भी इसमें शामिल हैं।

डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन ने किया स्वागत

भारत के मीडिया संस्थानों के संगठन डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) ने अमेरिका में विधेयक लाए जाने का स्वागत किया। डीएनपीए के एक सूत्र की तरफ से कहा गया, “काफी अच्छी बात है कि अमेरिकी सांसद गूगल जैसी बड़ी एकाधिकार वाली कंपनियों की क्षमताओं को सीमित करने पर काम कर रहे हैं। ”

बिग टेक को पारदर्शी, समावेशी और अनुकूल बनाने का कर रहे प्रयास : डीएनपीए

डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन के सूत्रों ने कहा कि हम बड़ी तकनीक के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हमें राजस्व के उचित वितरण की आवश्यकता है। एक अन्य सदस्य ने कहा, “यह सही दिशा में एक बड़ा कदम है। यह भारत में हमारे रुख की पुष्टि करता है क्योंकि हम राजस्व-साझाकरण के मामले में बिग टेक को अधिक पारदर्शी, समावेशी और अनुकूल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।” 

गौरतलब है कि डीएनपीए पिछले दो वर्षों से अल्फाबेट की गूगल को और अधिक पारदर्शी बनाने को लेकर चर्चा कर रहा है। खासकर उसके भारत के डिजिटल मीडिया संस्थानों से राजस्व साझा करने के विवादित मॉडल पर।

इस साल की शुरुआत में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने गूगल के डिजिटल न्यूज संस्थानों से राजस्व साझा करने के गलत तरीकों के खिलाफ जांच शुरू की थी। सीसीआई की जांच डीएनपीए की ओर से की गई शिकायतों के बाद ही शुरू हुई थी।

अमेरिका में लाए गए विधेयक में क्या?

अमेरिकी विधेयक के संशोधित संस्करण को पत्रकारिता प्रतिस्पर्धा और संरक्षण अधिनियम करार दिया गया है। अमेरिकी सांसद कहते हैं कि यह समाचार संगठनों की सामूहिक रूप से बातचीत करने की क्षमता देने के लिए कानूनी बाधाओं को दूर करता है और गेटकीपर प्लेटफॉर्म से उचित शर्तों को सुरक्षित करता है, जो नियमित रूप से इसके मूल्य के भुगतान के बिना समाचार सामग्री का उपयोग करते हैं। 

भारत में गतिविधियों की जानकारी दे रहीं बिग टेक कंपनियां

अमेरिका से यह खबर ऐसे समय में सामने आई है, जब कई बिग टेक दिग्गज भारत में एक संसदीय पैनल के सामने अपनी गतिविधियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। प्रतिस्पर्धा रोधी प्रथाओं की जांच कर रही संसदीय समिति के सामने मंगलवार को एपल, गूगल, अमेजन, नेटफ्लिक्स और माइक्रोसॉफ्ट की भारतीय शाखाओं के शीर्ष अधिकारी पेश हुए। बैठक के दौरान, वित्त पर संसदीय पैनल के कई सदस्यों ने बड़ी तकनीकी कंपनियों के बाजार प्रभुत्व पर सवाल उठाया। 

समिति के अध्यक्ष जयंत सिन्हा ने बैठक के बाद कहा कि संसदीय पैनल डिजिटल बाजारों के लिए प्रतिस्पर्धा कानून के विकास पर एक रिपोर्ट जारी करेगा। यही वह रिपोर्ट है जिसे हम एक साथ रख रहे हैं। हम विशेष रूप से प्रतिस्पर्धी आचरण और प्रतिस्पर्धी व्यवहार से संबंधित मामलों से निपटेंगे।



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By attkley

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