नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। अभी चीते जगह को पहचानने में लगे हैं। नए इलाके को वे परख रहे हैं, हालांकि कल के मुकाबले आज चीते थोड़े सहज नजर आए। वहीं पीएम मोदी ने चार वर्षीय मादा चीते को ‘आशा’ नाम दिया है। 

 

बता दें कि चार साल की आशा को चीता संरक्षण कोष (CCF) में लाए जाने के बाद कोई नाम नहीं दिया गया था। नामीबिया और सीसीएफ ने जन्मदिन के उपहार के रूप में पीएम मोदी के लिए मादा चीता का नामकरण करने का अवसर आरक्षित कर दिया था। नामीबिया से पांच मादा और तीन नर चीता लाए गए हैं। 

 

कूनो नेशनल पार्क में आए नए मेहमानों ने पहले दिन भैंसे के मीट का नाश्ता किया। चीते भारत आने के दो दिन पहले से भूखे थे, तीन दिन के बाद चीतों ने भारत में पहली बार नाश्ता किया है। पार्क प्रबंधन का कहना है कि भारत की धरती पर चीतों का पहला दिन शांति से बीता। दल की बड़ी मादा साशा जगह को परखती नजर आई है। पहले वह हल्के कदम रखती है फिर तेज दौड़ती है। चीतों ने भैंसे का मीट खाया और भरपूर नींद भी ली।  टीम का मानना है कि इन्हें माहौल में ढलने में कुछ वक्त लग सकता है। अभी चीतों को करीब एक माह के लिए अलग अलग बाड़ों में रखा गया है। इसके बाद इनके व्यवहार को देखते हुए इन्हें कूनो के अभयारण्य में छोड़ दिया जाएगा। 

चीता कंजरवेशन फंड की फाउंडर और एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. लॉरी मार्कर का मानना है कि साशा आसपास के इलाकों को स्कैन कर रही है। भारत में बसने में ज्यादा का समय लग सकता है। जहां से एक बार कोई जानवर की प्रजाति समाप्त हो जाती है तो उसे दोबारा बसाना काफी मुश्किल होता है।

 

जानें मादा चीतों के नाम

चीतों के साथ आई टीम ने बताया कि चीतों में दो साल की मादा चीता सियाया है। यह दक्षिण-पूर्वी नामीबिया की है। सितंबर 2020 से सीसीएफ में थी। ढाई वर्ष की मादा चीता बिल्सी है। जिसका जन्म अप्रैल 2020 में नामीबिया के दक्षिण-पूर्वी शहर ओमरुरु में एरिंडी प्राइवेट गेम रिजर्व में हुआ था। चीतों के दल में सबसे पुरानी और बड़ी चीता साशा है। एक और मादा चीता सवाना है। सवाना उत्तर-पश्चिमी नामीबिया की मादा चीता है। 

 

1948 में आखिरी बार देखा गया था चीता

भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया राजा रामनुज सिंहदेव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। इसके बाद 1952 में भारत में चीता प्रजाति की भारत में समाप्ति मानी गई। कूनो नेशनल पार्क में चीते को बसाने के लिए 25 गांवों के ग्रामीणों और 5 तेंदुए को अपना ‘घर’ छोड़ना पड़ा है. इन 25 में से 24  गांव के ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाया जा चुका है।



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By attkley

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