Mahakal Corridor Ujjain: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का महाकाल मंदिर भी अब काशी विश्वनाथ की तरह जगमगा उठा है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर बने महाकाल कॉरिडोर या महलोक लगभग 900 मीटर लंबा है यह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा है. 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी इस कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे. उज्जैन का महाकाल मंदिर आज तो जगमगा रहा है लेकिन आज से 987 वर्ष पहले ऐसा नही था. अयोध्या, काशी, मथुरा या हिंदुओं के हजारो मंद्रों की तरह उज्जैन का महाकाल मंदिर भी आक्रांताओ की आंखों में बेहद चुभता था.

बात है साल 1235 की, दिल्ली की गद्दी पर सुल्तान इल्तुतमिश का शासन था. मन्दिरों को तोड़ कर मूर्तियों को फेंक देना, मन्दिर का विध्वंस कर उसी के मलबे से मस्जिद बना देना, यह सब इल्तुतमिश के कुछ कुख्यात कार्य थे, जिसे उसने 1211 से 1236 तक अपने शासन काल मे जम कर किया था. इसी क्रम में साल 1235 में इल्तुतमिश ने मालवा पर कब्जे के इरादे से हमला कर दिया था. हमला करने के बाद इल्तुतमिश ने पहले भिलसा के किले और नगर को अपने कब्जे में लिया और  इसके बाद इल्तुतमिश उज्जैन जाता है और वहां पर स्थित महाकाल मंदिर को ध्वसत कर देता है जिसका निर्माण 300 वर्ष में पूरा हुआ था.

इल्तुतमिश का दरबारी इतिहासकर मिन्हास उल सिराज अपनी किताब तबकात ए नासिरी में लिखता है कि उज्जैन के महाकाल मंदिर को ध्वस्त करने से ही इल्तुतमिश का मन नहीं भरा था, मन्दिर को ध्वस्त करने के बाद उज्जैन के महाकाल मंदिर में स्थापित शिवलिंग को एक अन्य तांबे की मूर्ति के साथ इल्तुतमिश को दिल्ली ले कर आ जाता है. दिल्ली लाने के बाद इल्तुतमिश इन मूर्तियों को कुतुब परिसर में स्थित कुवतउल इस्लाम मस्जिद की सीढ़ियों पर रख देता है. ताकि मस्जिद में आने जाने वाले लोग इस पर लात मार कर अपमान करें. मिन्हास उल सिराज की किताब तबकात ए नासिरी का अंग्रेजी अनुवाद ब्रिटिश इतिहास एच एम इलियट ने किया था और इसी किताब के पेज 621, 622 और 623 पर उज्जैन के महाकाल मन्दिर पर हमले से लेकर दिल्ली लाने का पूरा जिक्र है.

तकरीबन 499 वर्ष विध्वंसक स्थिति में रहने के बाद साल 1734 में मराठा राजा राणेजी सिन्धे के शासनकाल में फिरसे मन्दिर का पुनर्निर्माण शुरू हुआ और साल 1863 में जाकर पूरा हुआ था. इतिहासकार और भारतीय इतिहास अनुसंधान के निदेशक डॉ ओम जी उपाध्याय के मुताबिक मिन्हास उल सिराज जिस दूसरी तांबे की मूर्ति की बात कर रहा जिसे इल्तुतमिश दिल्ली लेकर आया था राजा विक्रमादित्य की भव्य मूर्ति थी, जिनके नाम पर विक्रम संवत की शुरुआत हुई थी.

उज्जैन का महाकाल मंदिर का लिखित इतिहास की बात करें तो इस मंदिर का इतिहास ही हजारो वर्ष पुराना है. महाकवि कालिदास हो या तुलसीदास, उनकी राजनाओं में उज्जैन के महाकाल मंदिर का वर्णन है. महाकाल कॉरिडोर के निर्माण के समय खुदाई के दौरान भी हजारो वर्ष पुराने पत्थर, भगवान विष्णु की मूर्ति और भगवान शिव का शिवलिंग मिला था. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि उज्जैन का महाकाल मंदिर अब 987 साल बाद फिरसे अपने सनातनी वैभव को पाने जा रहा है.

ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर





Source link

By attkley

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *