Joshimath Crisis News:  उत्तराखंड में जोशीमठ के लोगों की जिंदगी में एक बड़ी समस्या आ गई है. दरअसल यहां की जमीन में दरार पड़ रही है, जमीन धंस रही है, घरों को फोड़कर पानी बह रहा है. लोगों के घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं. लोग राहत के लिए सरकार से अपील कर रहे हैं. हालांकि स्थानीय लोगों में सरकार के प्रति भारी गुस्सा भी है कि उन्होंने उनकी चेतावनियों को अनदेखा किया.

पीटीआई के मुताबिक जोशीमठ के संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका में कहा गया है कि यह घटना बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण हुई है और उत्तराखंड के लोगों को तत्काल आर्थिक सहायता और मुआवजा देने का अनुरोध किया गया है.

अधिकारियों ने जानकारी दी कि जोशीमठ में 11 और परिवारों को शनिवार को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया और शहर में दरार से प्रभावित घरों की संख्या बढ़कर 603 हो गई है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जमीनी स्थिति का जायजा लेने के लिए शनिवार को जोशीमठ का दौरा किया. इससे एक दिन पहले उन्होंने लगभग 600 प्रभावित परिवारों को तत्काल सुरक्षित स्थानों पर भेजे जाने का निर्देश दिया था.

इस परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे लोग
दूसरी तरफ जोशीमठ में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है. स्थानीय लोग इन हालात के लिए  मुख्यत: राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

जोशीमथ बचाओ संघर्ष समिति के संजोयक अतुल सती ने कहा, ‘हम पिछले 14 महीनों से अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया गया. अब जब स्थिति हाथ से निकल रही है तो वे चीजों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की टीम भेज रहे हैं.’ उन्होंने कहा, “अगर समय रहते हमारी बात पर ध्यान दिया गया होता तो जोशीमठ में हालात इतने चिंताजनक नहीं होते.”

‘2021 में 14 घर हो गए थे असुरक्षित’
सती ने बताया कि नवंबर 2021 में जमीन धंसने की वजह से 14 परिवारों के घर रहने के लिए असुरक्षित हो गए थे. उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद लोगों ने 16 नवंबर 2021 को तहसील कार्यालय पर धरना देकर पुनर्वास की मांग की थी और एसडीएम को ज्ञापन सौंपा था, जिन्होंने (एसडीएम) खुद भी स्वीकार किया था कि तहसील कार्यालय परिसर में भी दरारें पड़ गई हैं.

सती ने सवाल किया, ‘अगर सरकार समस्या से वाकिफ थी तो उसने इसके समाधान के लिए एक साल से अधिक समय तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया. यह क्या दर्शाता है?’ उन्होंने कहा कि लोगों के दबाव के चलते एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना और हेलांग-मारवाड़ी बाईपास के निर्माण को अस्थायी रूप से रोकने जैसे तात्कालिक कदम उठाए गए हैं, लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है.

सती ने कहा, ‘जोशीमठ के अस्तित्व पर तब तक खतरा बरकरार रहेगा, जब तक इन परियोजनाओं को स्थायी रूप से बंद नहीं कर दिया जाता.‘ उन्होंने कहा कि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ऐसा न होने तक अपना आंदोलन जारी रखेगी.

पिछले दो दशक से इलाके में खुदाई कर रही हैं मशीनें’
बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने भी इमारतों में दरार पड़ने के लिए एनटीपीसी की परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, ‘तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना की सुरंग जोशीमठ के ठीक नीचे स्थित है. इसके निर्माण के लिए बड़ी बोरिंग मशीनें लाई गई थीं, जो पिछले दो दशक से इलाके में खुदाई कर रही हैं.‘

उनियाल ने कहा, ‘सुरंग के निर्माण के लिए रोजाना कई टन विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. एनटीपीसी द्वारा बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का इस्तेमाल करने की वजह से इस साल तीन जनवरी को जमीन धंसने की रफ्तार बढ़ गई.‘

(इनपुट – भाषा)

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By attkley

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