Jharkhand News:  झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के लिए सत्तारूढ़ पार्टी जेएमएम के ही वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने पहली बार बागी तेवर दिखाए हैं. लेकिन इस बार उन्होंने पारसनाथ पहाड़ी के मुद्दे पर कुछ ऐसा किया है जो झारखंड में आने वाले दिनों की राजनीति के लिए एक बड़ा संकेतक हो सकता है.  उन्होंने इस मुद्दे पर आदिवासियों की विशाल रैली आयोजित कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर हमला बोला.  

संथाल परगना के बोरियो क्षेत्र के झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम पिछले डेढ़-दो साल से हेमंत सोरेन के कई फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं. हेमंत सोरेन और पार्टी ने उनके तल्ख तेवरों को कभी कोई महत्व नहीं दिया. लेकिन इस बार लोबिन हेंब्रम ने पारसनाथ पहाड़ी के मुद्दे को जिस तरह आदिवासियों के धर्म, उनके हक और पहचान के सवाल से जोड़ दिया है, वह झामुमो के परंपरागत राजनीतिक समीकरण को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है.

लोबिन हेंब्रम ने 10 जनवरी को पारसनाथ में सरकार के खिलाफ आदिवासियों के प्रदर्शन की अगुवाई की थी. उनके तेवर इतने तीखे थे कि उनके भाषण की क्लिंपिंग का इस्तेमाल कर अब भाजपा के नेता भी सोशल मीडिया पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.

पारसनाथ पहाड़ी पर दावेदारी करते हुए आदिवासी संगठनों ने 10 जनवरी को परंपरागत हथियारों के साथ प्रदर्शन किया और विशाल सभा की.

आंदोलन-बंद की चेतावनी
लोबिन हेंब्रम ने पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासियों का पूजा स्थल ‘मरांग बुरू’ बताते हुए मुख्यमंत्री को अल्टीमेटम दे दिया कि आगामी 25 जनवरी तक पारसनाथ पहाड़ी पर आदिवासियों का अधिकार बहाल करें, अन्यथा झारखंड बचाओ मोर्चा के तहत जोरदार आंदोलन होगा. जरूरत पड़ी तो झारखंड भी बंद कराया जाएगा.

सीएम के सलाहकारों पर साधा निशाना
लोबिन हेंब्रम ने हेमंत सोरेन पर बिहारी सलाहकारों से घिरे होने का आरोप लगाया और कहा कि ये लोग आदिवासी विरोधी हैं. उन्होंने सीएम के प्रेस सलाहकार अभिषेक पिंटू, जेल में बंद उनके राजनीतिक प्रतिनिधि पंकज मिश्र, सलाहकार सुनील श्रीवास्तव, सुप्रियो भट्टाचार्य आदि का जिक्र करते हुए यहां तक कह दिया कि मन करता है कि इन्हें दस लात मारें.

लोबिन हेंब्रम ने इस मुद्दे पर आगामी 30 जनवरी को आदिवासी महानायक बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू और 2 फरवरी को सिदो-कान्हू के बलिदान स्थल भोगनाडीह में उपवास और धरना का ऐलान किया है.

अगर इस मुद्दे पर वह आदिवासियों की भावनात्मक गोलबंदी करने में सफल रहे तो सोरेन सरकार के  लिए बड़ा खतरा बन सकते है. हालांकि लोबिन हेंब्रम फिलहाल झामुमो में हैं, लेकिन कुछ महीने पहले उन्होंने झारखंड बचाओ मोर्चा नामक एक संगठन बनाया है.’

लोबिन हेंब्रम दावा कर रहे हैं कि यह एक गैर राजनतिक संगठन है लेकिन झारखंड की राजनीति के जानकारों का मानना है कि आदिवासी गोलबंदी में अगर उन्हें सफलता मिल गई तो यह बहुत  संभव है कि आगामी विधानसभा चुनाव में इस बैनर के तहत वह झामुमो से अलग रास्ता भी अख्तियार कर सकते हैं.

लोबिन हेंब्रम ने कई बार कहा कि तीन साल में इस सरकार ने आदिवासियों-मूलवासियों के लिए कुछ भी नहीं किया. विधानसभा में भी वह सरकार के खिलाफ कई बार बोल चुके हैं. एक बार वे अपनी सरकार की आलोचना करते हुए विधानसभा में रो पड़े थे.

पांच बार विधायक चुने गए हैं हेंब्रम
लोबिन हेंब्रम संथाल परगना की बोरियो सीट से पांच बार विधायक चुने गए हैं. अपने इलाके में उनका खासा जनाधार माना जाता है. उनके राजनीतिक दबदबे का असर इस बात से ही पता चलता है कि जब एक बार झामुमो ने उनका टिकट काट दिया था तो वे निर्दलीय चुनाव जीत गए थे.

झामुमो उन पर कार्रवाई करने से बच रहा है कि कहीं वह इसे शहादत की तरह भुना न लें और आदिवासियों की सहानुभूति हासिल कर ले. पार्टी नहीं चाहती कि हेंब्रम की अगुवाई में कोई ऐसा मोर्चा बन जाए, जिसकी वजह से आगामी चुनाव में आदिवासियों के वोटों के बंटवारे की गुंजाइश पैदा हो. फिलहाल झामुमो के सामने बड़ा सवाल यह है कि लगातार अपनी ही सरकार को चुनौती दे रहे अपनी ही पार्टी के इस विधायक को कैसे साधा जाए.

(इनपुट – IANS)

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