हिमालयी वायग्रा कीड़ा जड़ी को एक पुरानी चीनी चिकित्सा पद्धति में दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिसे “यार्टसा गुम्बो” कहते हैं. इसे मशरूम की तरह खाया जाता है या फिर इसे दूध में भी उबाला जाता है. यह जड़ी बहुत रेयर होती है और बेहद महंगी भी होती है. इसे बेचने वाले मनमाना कीमत मांगते हैं. इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य सुधार और यौन क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है.
याद दिला दें कि इस जड़ी के लिए चीनी सैनिकों पर अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने का आरोप कई बार लग चुका है. इस जड़ी बूटी को भारत में ‘कीड़ा जड़ी’ कहा जाता है और इसे हिमालयन गोल्ड के रूप में भी जाना जाता है.
थिंक टैंक इंडो-पैसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस (IPCSC) की रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन ने जड़ी-बूटी इकट्ठा करने के लिए अरुणाचल प्रदेश में कई घुसपैठ की थी. कीड़ा जड़ी दो इंच लंबी और भूरे रंग की होती है. यह मुख्य रूप से भारतीय हिमालय और दक्षिण-पश्चिमी चीन में किन्हाई-तिब्बती पठार में और 3000-5000 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है.
इस जड़ी-बूटी की बहुत मांग है और इसमें काफी चिकित्सीय क्षमता है जो एक बायोएक्टिव अणु से प्राप्त होती है, जिसे कॉर्डिसेपिन कहा जाता है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक दिन इस यौगिक को एक प्रभावी एंटीवायरल और एंटी-कैंसर उपचार में बदला जा सकेगा. यह भी कहा जाता है कि इसमें कामोत्तेजक गुण होते हैं, जिसे हिमालयी वियाग्रा भी कहा जाता है.
इसके औषधीय महत्व के अलावा यह एक सिद्ध कीट नाशक भी है. मशरूम के बीजाणु कीटों को संक्रमित करते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है. कवक के पूर्ण विकसित शरीर, फलने के लिए तैयार, फिर कीट के मृत शरीर से अंकुरित होते हैं. चीन दुनिया में कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है.
चीन में इस जड़ी-बूटी के सोने से भी ज्यादा कीमती होने का दावा किया जाता है. 2022 में कीड़ा जड़ी का वैश्विक बाजार 1,072.50 मिलियन डॉलर था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी प्रति किलोग्राम कीमत 10 से 12 लाख रुपये है. इस जड़ी का इतना मूल्य है कि इसे इकट्ठा करने और बेचने से हिमालयी क्षेत्रों में पूरे कस्बों की अर्थव्यवस्था चलती है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि कवक का व्यापार हिमालय और तिब्बती पठार में 80 प्रतिशत परिवारों की आय को वित्तपोषित कर सकता है.
बता दें कि चीन में पिछले कुछ वर्षों से मूल्यवान कवक की फसल में गिरावट आ रही है. पिछले दो वर्षों में चीन के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र किंघाई में फसल की कटाई में गिरावट आई है. हालांकि, पिछले 10 वर्षों में मांग तेजी से बढ़ी है क्योंकि इस जड़ी से चीनी मध्य वर्ग वैज्ञानिक सबूतों की कमी के बावजूद गुर्दे की बीमारियों से लेकर नपुंसकता तक सब कुछ ठीक करना चाहता है.
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(एजेंसी इनपुट के साथ)