सीएम योगी और अन्य
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नगरीय निकाय चुनाव में केंद्र और प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों के इलाकों में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। देश में अलग-अलग जगहों पर चुनाव कराने के लिए भेजे जाने वाले राष्ट्रीय पदाधिकारी अपने क्षेत्र में पार्षद को न जितवा पाए।
भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मानते हुए लड़ा है। पार्टी ने चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को उनके क्षेत्र की निकायों में जीत की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन नतीजे चौंकाने वाले सामने आए हैं।
नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के दिग्गज सांसद और विधायकों भी अपना क्षेत्र नहीं बचा सके हैं। विधायकों और सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ी नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है।
चुनाव परिणाम के बाद भाजपा प्रदेश मुख्यालय को मिल रहे फीडबैक में सामने आया है कि कई जगह सांसद और विधायकों के करीबियों ने बगावत कर पार्टी प्रत्याशी को चुनाव हराया। माननीय अव्वल तो अपने करीबी को मैदान से हटाने में नाकाम रहे और उसके बाद पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार में भी दिलचस्पी नहीं ली।
चुनाव हारने के बाद प्रत्याशियों ने इसका ठीकरा विधायक और सांसदों पर फोड़ना शुरू कर दिया है। अवध सहित अन्य क्षेत्रों में आरोप लगाए जा रहे हैं कि कई सांसदों और विधायकों ने न सिर्फ अपने परिजनों और करीबियों को रणनीति के तहत चुनाव लड़ाया, बल्कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी की हार के लिए पर्दे के पीछे सारे जतन करते रहे। कई विधायक तो चुनाव आते ही बीमारी का बहाना बनाकर निष्क्रिय हो गए और पार्टी को दिखाने के लिए फोटो खिंचाने तक सीमित रहे। नतीजे आते ही फिर सक्रिय होकर मैदान में आ गए हैं।