उन्होंने कहा कि हम अपनी आपत्तियों को छोड़ने से पहले NCERT द्वारा किए गए परिवर्तनों का विश्लेषण करेंगे. हमारे विशेषज्ञ इस मामले को देखेंगे. स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार ने कहा कि संदर्भों को संदर्भ से बाहर पढ़ने की संभावनाओं को रोकने के लिए एनसीईआरटी की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा संदर्भों को हटाने का निर्णय लिया गया था. सिख निकाय की आपत्ति आनंदपुर साहिब संकल्प के उल्लेख पर “स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति” पुस्तक में है.
‘सिख राष्ट्र’ के संदर्भ को मार्ग से प्रयोग किया गया है: “संकल्प ने सिख समुदाय की आकांक्षाओं की भी बात की और सिखों के ‘बोलबाला’ (प्रभुत्व) को प्राप्त करने के रूप में अपना लक्ष्य घोषित किया. प्रस्ताव संघवाद को मजबूत करने की दलील थी, लेकिन इसकी व्याख्या एक अलग सिख राष्ट्र की दलील के रूप में भी की जा सकती है.
वाक्य “संकल्प संघवाद को मजबूत करने के लिए एक दलील थी, लेकिन इसकी व्याख्या एक याचिका के रूप में भी की जा सकती है. अलग सिख राष्ट्र” को हटा दिया गया और “संकल्प संघवाद को मजबूत करने के लिए एक दलील थी” के रूप में फिर से लिखा गया.
क्या हटाया गया?
जिन वाक्यों को हटाया गया है, उनमें से एक में लिखा है ‘‘प्रस्ताव, संघवाद को मजबूत करने के लिए एक दलील थी, लेकिन इसकी व्याख्या एक अलग सिख राष्ट्र के लिए याचिका के रूप में भी की जा सकती है’’. इस वाक्य को भी हटाया गया कि अधिक चरमपंथी तत्वों ने भारत से अलगाव और ‘खालिस्तान’ के निर्माण की वकालत शुरू कर दी.
ये हुआ बदलाव
बयानों को फिर से इस तरह लिखा गया है कि प्रस्ताव, संघवाद को मजबूत करने की दलील थी. शिक्षा मंत्रालय में स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार के अनुसार, ‘‘श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को गलत तरीके से पेश करके सिख समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री को वापस लेने के संबंध में एसजीपीसी से ज्ञापन प्राप्त हुआ था. इस मुद्दे की जांच के लिए एनसीईआरटी की विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई थी और उसकी सिफारिशों के आधार पर निर्णय लिया गया था.’’
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव 1973
उन्होंने कहा, ‘‘एनसीईआरटी ने शुद्धि पत्र जारी किया है. नए शैक्षणिक सत्र के लिए भौतिक रूप से पुस्तकें मुद्रित की जा चुकी हैं, वहीं डिजिटल पुस्तकों में बदलाव दिखेगा.’’ आनंदपुर साहिब प्रस्ताव 1973 में शिरोमणि अकाली दल का अपनाया गया एक दस्तावेज था. प्रस्ताव में सिख धर्म के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गयी और पंजाब के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की गयी. इसमें यह भी मांग की गयी कि चंडीगढ़ शहर को पंजाब को सौंप दिया जाना चाहिए और पड़ोसी राज्यों में पंजाबी को दूसरी भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए. एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से कई विषयों और अंशों को हटाने से पिछले महीने विवाद शुरू हो गया था और विपक्ष ने केंद्र पर ‘‘बदले की भावना के साथ लीपापोती’’ करने का आरोप लगाया था.
(एजेंसी इनपुट के साथ)