खबरों के खिलाड़ी।
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खबरों के खिलाड़ी की नई कड़ी के साथ एक बार फिर हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। बीते हफ्ते की प्रमुख खबरों के इस सधे हुए विश्लेषण को अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर लाइव देखा जा सकता है। हफ्ते की बात की जाए तो विपक्षी एकता की खूब चर्चा है। 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी नेताओं की अहम बैठक होनी है। विपक्ष एक हो रहा है तो वहीं भाजपा ने भी अपने पुराने सहयोगियों से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी है। भाजपा के जेडीएस, अकाली दल के साथ गठबंधन पर विचार करने की भी चर्चा है। जैसे-जैसे विपक्षी एकता की कोशिश हो रही है तो भाजपा को भी समझ आ रहा है कि उसे भी साथी चाहिए….इसी अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए इस बार हमारे साथ मौजूद रहे वरिष्ठ विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री, सुमित अवस्थी, आदेश रावल, संजय राणा, शिवम तिवारी। यहां पढ़िए इनकी चर्चा के कुछ अहम अंश…
सुमित अवस्थी
‘पटना में 23 जून को होने वाली विपक्षी एकता की बैठक को लेकर काफी चर्चाएं हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर विपक्षी एकता होती है तो उससे भाजपा को कितना नुकसान होगा? पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटों में से 200 से ज्यादा सीटें उत्तर भारत में जीतीं थी लेकिन इस बार अगर विपक्षी एकता हो जाती है तो भाजपा के लिए उत्तर में मुसीबत खड़ी हो सकती है। यही वजह है कि भाजपा दक्षिण में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन की चर्चा कर रही है, लेकिन क्या दक्षिण से उत्तर के नुकसान की भरपाई हो सकती है, ये देखना होगा। विपक्षी एकता की चर्चा के बीच पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन चौधरी ने टीएमसी कार्यकर्ताओं पर कांग्रेस कार्यकर्ता की हत्या का आरोप लगाया है और मुकदमा भी दर्ज करा रहे हैं। ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच केंद्र में कैसे गठबंधन होगा? वहीं भाजपा जिन पार्टियों के साथ गठबंधन की बात कर रही है, उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इससे भाजपा की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को भी नुकसान हो सकता है। हालांकि जनता के मन में क्या है ये तो जनता ही जानती है और देश की जनता बहुत समझदार है।’
विनोद अग्निहोत्री
‘विपक्षी एकता को लेकर पटना में अभी सिर्फ बैठक होनी है। इस बैठक में सीटों के बंटवारे और न्यूनतम साझा कार्यक्रम को लेकर बातचीत हो सकती है। विपक्षी एकता को लेकर नीतीश कुमार की सक्रियता को लेकर सवाल किए जा रहे हैं तो बता दूं कि नीतीश कुमार के साथ राहुल गांधी काफी सहज हैं और राहुल गांधी पूर्व में नीतीश कुमार की तारीफ भी कर चुके हैं। इसलिए नीतीश कुमार विपक्षी एकता की कवायद हवा में नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें जिम्मेदारी दी गई है। नीतीश कुमार को इसलिए आगे किया गया है क्योंकि अगर कांग्रेस किसी क्षेत्रीय पार्टी को बुलाएगी तो शायद वो ना आएं, लेकिन नीतीश कुमार के साथ ऐसा नहीं है। भाजपा भी इस बात को बखूबी समझ रही है और पार्टी में इसे लेकर बेचैनी भी है।’