हिंदू हों या मुसलमान, हर धार्मिक समुदाय के लोग देश के जटिल तलाक कानूनों से मुक्ति चाहते हैं। सभी धर्मों के लोगों का मानना है कि देश में तलाक लेने की प्रक्रिया बहुत जटिल है। यदि एक पक्ष न चाहे तो दूसरे पक्ष के लिए तलाक लेना लगभग असंभव सा हो जाता है। ऐसी स्थिति में लोगों को लंबे समय तक के लिए अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं। कई बार इन परिस्थितियों में ज्यादा खतरनाक परिणाम सामने आते हैं जहां पति या पत्नी अपने जीवन साथी से छुटकारा पाने के लिए गैर-कानूनी रास्ते भी अपना लेते हैं। संभवतः इन्हीं परिस्थितियों का परिणाम है कि पुरुष और महिला, समान रूप से चाहते हैं कि देश के लिए बनाई जाने वाली समान नागरिक संहिता में पति-पत्नी के लिए तलाक लेने के लिए एक समान अवसर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। कमेटी को भारी संख्या में इस तरह के सुझाव मिले हैं जहां लोग तलाक कानूनी प्रक्रिया को आसान बनाने की मांग कर रहे हैं।
यूसीसी कमेटी को लोगों ने सुझाव दिया है कि पति-पत्नी में तलाक होने पर दोनों पक्षों के अधिकारों को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। तलाक होने पर बच्चों पर पति-पत्नी का बराबर का अधिकार होना चाहिए। यदि पति-पत्नी के संबंध चलने लायक स्थिति में न रह जाएं तो उन्हें एक समयबद्ध प्रक्रिया के अंतर्गत अलग होने का अधिकार मिलना चाहिए।
उत्तराखंड सरकार ने राज्य के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लाने के लिए एक कमेटी का गठन किया था। सूत्रों से मिली सूचना के अनुसार, कमेटी को यूसीसी पर अब तक लगभग 2.5 लाख सुझाव मिले हैं। उत्तराखंड में लगभग 20 लाख परिवार हैं। एक मोटे अनुमान के तौर पर यदि यह माना जाए कि हर सुझाव अलग-अलग परिवारों से आएं हैं तो राज्य की दस फीसदी से ज्यादा आबादी ने यूसीसी को लेकर अपने सुझाव कमेटी से साझा किए हैं।
क्या चाहते हैें लोग
उत्तराखंड यूसीसी कमेटी से जुड़े सूत्रों के अनुसार, आश्चर्यजनक रूप से तलाक के लिए समान आधारों की मांग करने वालों में हिंदू और मुसलमान दोनों धार्मिक समुदाय के लोग शामिल हैं। जबकि सामान्य तौर पर यह धारणा है कि मुस्लिम समुदाय में तलाक लेने की प्रक्रिया ज्यादा आसान है। तीन तलाक समाप्त होने के बाद उनमें भी यह धारणा बन रही है कि आवश्यकता पड़ने पर तलाक लेने की प्रक्रिया जटिल हो सकती है।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु है कि तलाक के लिए समान आधार की मांग करने वालों में पुरुष और महिलाएं दोनों वर्ग के लोग शामिल हैं। दोनों ही वर्गों के लोग यह चाहते हैं कि तलाक की प्रक्रिया ज्यादा लंबी नहीं चलनी चाहिए। पुरुषों की ओर से सबसे ज्यादा सुझाव यह है कि तलाक लेने के लिए आधार जेंडर न्यूट्रल होने चाहिए तो महिलाओं का कहना है कि तलाक होने पर महिला के आर्थिक हितों की सुरक्षा की जानी चाहिए।
देश की जरूरत है समान नागरिक संहिता
प्रसिद्ध वकील आभा सिंह ने अमर उजाला से कहा कि समान नागरिक संहिता इस समय देश की आवश्यकता है। अदालती कार्रवाई के दौरान उन्होंने पाया है कि महिलाएं तलाक कानूनों और दहेज उत्पीड़न विरोधी कानूनों का बहुत हद तक दुरुपयोग कर रही हैं। इन कठोर कानूनों के दबाव में वे अपने पतियों को एक एटीएम की तरह इस्तेमाल करती हैं और उनसे पैसे वसूलती हैं। तलाक की जटिल प्रक्रिया के कारण अक्सर पुरुषों को बहुत परेशान होना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि तलाक लेने की प्रक्रिया समयबद्ध, जेंडर न्यूट्रल और आसान होनी चाहिए। यदि एक पक्ष किसी भी कारण से दूसरे पक्ष के साथ अपना आगे का जीवन नहीं बिताना चाहता तो उसे इसके लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
पैसे ले रही, लेकिन तलाक नहीं दे रही पत्नी
उन्होंने एक केस का उदाहरण देते हुए बताया कि मुंबई की एक अदालत में एक सेलिब्रिटी का तलाक का मुकदमा 2017 से चल रहा है। इस केस में पहले तो पति को एक मोटी रकम पत्नी को चुकानी पड़ी। इसके बाद अब पति को बच्चों के खर्च के नाम पर पत्नी को हर महीने एक मोटी रकम चुकानी पड़ रही है। लेकिन दुर्भाग्य है कि इन छह सालों में पति एक बार भी अपने बच्चों से नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि बच्चों पर पति-पत्नी का समान अधिकार होता है। लेकिन ऐसे मामले में अक्सर पत्नियों को वरीयता दी जाती है। जबकि सभी मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों के उचित विकास के लिए उन्हें मां-बाप दोनों का प्यार समान रूप से चाहिए होता है।
उन्होंने कहा कि, इस मामले में सबसे गलत पहलू यह है कि गत पांच साल से अलग रहने के बावजूद पत्नी ने पति पर पिछले साल दहेज उत्पीड़न और हिंसा करने का आरोप लगाते हुए पति पर केस दर्ज करा दिया। इससे पति की परेशानी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता में इस तरह की विसंगतियों को दूर करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है।
न कठोर, न सरल कानून
आभा सिंह ने कहा कि यदि यूसीसी कमेटी तलाक कानूनों का बड़े स्तर पर बदलाव करती है तो वे इसका स्वागत करेंगी। लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि तलाक कानून न तो इतने ज्यादा आसान हों कि लोग थोड़े-थोड़े मनमुटाव के बाद तलाक लेने लगें और विवाह नाम की संस्था ही खतरे में पड़ जाए। इसके साथ ही तलाक कानून इतने ज्यादा कठोर भी नहीं होने चाहिए कि यदि एक पक्ष न चाहे तो दूसरे पक्ष को तलाक मिलना ही असंभव हो जाए। इसके लिए दोनों पक्षों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए एक समयबद्ध प्रक्रिया निश्चित की जा सकती है।
राजनीति न हो
उन्होंने कहा कि समाज बहुत बदल चुका है। बदले समय में लोगों को नए कानूनों की आवश्यकता है। यदि सरकार समान नागरिक संहिता लाती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन यदि यह शिगूफा केवल दो धर्मों के लोगों के बीच टकराव पैदा करके राजनीतिक लाभ लेने के लिए छोड़ा जा रहा है तो इससे बचा जाना चाहिए।