खबरों के खिलाड़ी।
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इस हफ्ते मुंबई में जब विपक्षी दलों की बैठक हो रही थी, तब बैठक से पहले दिल्ली से एक खबर आई कि संसद का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। इससे ये कयास लगाए जाने लगे कि क्या सरकार, एक देश-एक चुनाव की दिशा में कदम बढ़ा रही है? इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए हमारे साथ खबरों के खिलाड़ी की इस कड़ी में वरिष्ठ विश्लेषक अवधेश कुमार, प्रेम कुमार, देशरत्न निगम, समीर चौगांवकर और गुंजा कपूर मौजूद थे। इस चर्चा को अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर भी देखा जा सकता है। आइए जानते हैं चर्चा के कुछ अंश…

गुंजा कपूर

‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरप्राइज देने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे कयास लग रहे हैं कि यह सत्र एक देश-एक चुनाव को लेकर हो सकता है। हम एक संघीय लोकतंत्र हैं, जहां लोगों को अपने राज्यों और संस्कृतियों के बारे में बात रखने का मौका मिलता है, लेकिन राष्ट्रीय एजेंडा कहीं पीछे छूट जाता है। यही वजह है कि इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। पहले लालकृष्ण आडवाणी ने भी यह मुद्दा उठाया था। इससे चुनाव खर्च में तो कमी आएगी ही, साथ ही सुरक्षा बलों और चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों की जरूरत होगी, तो यकीनन यह एक अच्छा विचार है। लोग कह रहे हैं कि इससे क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा, लेकिन मतदाता काफी समझदार हैं और ऐसा नहीं है कि अब एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा। अभी देश में अनेक झंडे हैं, लेकिन कोई नेशनल एजेंडा नहीं है।’

प्रेम कुमार

‘अगर हम नई व्यवस्था लागू करना चाहते हैं तो यह देखना होगा कि हम लोकतंत्र के स्तर पर किसी अलोकतांत्रिक रास्ते पर तो नहीं बढ़ रहे हैं। क्या हमारे लिए एक देश-एक चुनाव ही सबसे बड़ी प्राथमिकता है? इससे जो संसद में आपराधिक प्रवृत्ति के लोग हैं, क्या वो कम हो जाएंगे या चुनाव में धन-बल का इस्तेमाल बंद हो जाएगा? अगर ऐसा नहीं होगा तो ये हमारी प्राथमिकता में नहीं होना चाहिए। आज भी बड़ी संख्या में लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब हैं, सरकार की प्राथमिकता में ये चीजें होनी चाहिए। हम लोकतंत्र के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं। जब-जब चुनाव होते हैं देश में काला धन भी खर्च होता है, इससे उपभोग बढ़ता है। इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। तो एक साथ चुनाव कराकर पैसे बचाने की बात गलत है। देश में लोकतंत्र पैसों से बढ़कर है। पैसे खर्च करके अगर लोकतंत्र मजबूत होता है तो यह ठीक है। लोकतंत्र मजबूत करने की बात कोई नहीं कर रहा है, सिर्फ खर्चा बचाने की बात हो रही है। देश का लोकतंत्र खर्चों से ऊपर है।’








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By attkley

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