BJP Mission South
– फोटो : Amar Ujala/Sonu Kumar

विस्तार


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनावी रणनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की जोड़ी ने बेशक देश के तमाम राज्यों में कई चुनावी करिश्मे दिखाए हैं, यहां तक कि त्रिपुरा समेत उत्तर पूर्वी राज्यों में भी अपना परचम लहराने में कामयाबी पाई है, लेकिन अभी तक दक्षिण भारत में इस जोड़ी को भाजपा का विस्तार करने में अभी तक कामयाबी नहीं मिल पाई है। पार्टी न केवल दक्षिण के दूसरे राज्यों में अपना विस्तार करने में असफल रही है, बल्कि कर्नाटक में अपनी जमी जमाई सरकार को भी गंवा दिया है। कर्नाटक की हार के बाद तो यही संदेश गया है कि भाजपा के लिए दक्षिण भारत के दरवाजे फिलहाल बंद हो चुके हैं। तमिलनाडु में जिस तरह एआईएडीएमके ने भाजपा से नाता तोड़ने का एक तरफा एलान किया है, उससे दक्षिण भारत में उसके विस्तार की रही-सही संभावनाएं भी समाप्त हो गई हैं।  

‘दक्षिण को समझने में भूल कर रही भाजपा’

दक्षिण की राजनीति को करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक और तेलंगाना जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बाला स्वामी ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा ने जब सुनील बंसल को दक्षिण भारत के मोर्चे पर लगाया था, तब यही संदेश गया था कि अब वह दक्षिण भारत में अपने विस्तार के लिए बेहद गंभीर है। इसके पहले सुनील देवधर को भी आंध्र प्रदेश के मोर्चे पर लगाकर भी यही संदेश देने की कोशिश की थी। एक बारगी जिस तरह हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया, और उसके तुरंत बाद तेलंगाना के हर विधानसभा क्षेत्र में प्रेस कांफ्रेंस कर केसीआर सरकार पर जोरदार हमला बोला गया, यह लगा कि भाजपा अब अपनी रणनीति को अंजाम देने में जुट गई है।

कर्नाटक की गलती तेलंगाना में भी   

बालास्वामी कहते हैं कि भाजपा ने कुछ ऐसे फैसले लेने शुरू कर दिए, जिसका कोई तर्क खुद उसके अपने कार्यकर्ताओं को ही समझ में नहीं आ रहा है। कर्नाटक में जमीनी पकड़ रखने वाले नेताओं बीएस येदियुरप्पा को मुख्य चुनावी रणनीति बनाने से दूर रखना और लिंगायत समुदाय के प्रभावी नेताओं को उनकी सीटों से टिकट न देकर पार्टी ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। कर्नाटक की हार को कांग्रेस की सफलता कम और भाजपा की आत्मघाती राजनीति का परिणाम ज्यादा माना जा रहा है।








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By attkley

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