India-Bangladesh Relations: भारत के आसपास चीजें जितनी तेजी से बदल रही हैं, उसे देखते हुए ‘नेबर्स फर्स्ट’ पॉलिसी और भी अहम होती जा रही है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 13 दिन में दूसरी बार भारत दौरे पर आई हैं. इसे दोनों देशों के बीच रिश्तों की डोर और मजबूत करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. भारत बांग्लादेश के लिए एक अहम साझेदारों में से एक है. बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के संबंध मजबूती के अलग ही मुकाम पर पहुंचे हैं. 

लेकिन इस बार दोनों देशों के एजेंडे में काफी कुछ है, जिन पर चर्चा भविष्य की राह तय करेगी. माना जा रहा है कि शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शनिवार को काफी समय से ठंडे बस्ते में पड़े तीस्ता नदी विवाद, चीन के साथ रिश्ते, मोंगला पोर्ट के मैनेजमेंट और हथियारों की बिक्री को लेकर बातचीत हो सकती है. चलिए अब विस्तार से जानते हैं कि दोनों देशों के बीच किन मुद्दों को लेकर बातचीत होनी है.

तीस्ता नदी विवाद

दोनों देशों के बीच यह विवाद काफी समय से लंबित है. तीस्ता नदी बांग्लादेश में एंट्री से पहले सिक्किम और प.बंगाल से होकर गुजरती है. दोनों देशों के लाखों लोगों के लिए यह कृषि और रोजी-रोटी का साधन है. लेकिन इसके पानी को बांटने को लेकर दशकों से दोनों देशों के बीच विवाद चल रहा है, जिससे राजनीतिक और कूटनीतिक विवाद पैदा हो रहा है. 

भारत इस विवाद को जल्द से जल्द सुलझाना चाहेगा क्योंकि चीन बांग्लादेश के इन्फ्रास्ट्रक्चर में जबरदस्त तरीके से निवेश कर रहा है. तीस्ता नदी के मैनेजमेंट और रेस्टोरेशन के लिए बांग्लादेश को चीन से 1 बिलियन डॉलर का लोन मिल सकता है. 

मैनेजमेंट और रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट का मकसद नदी का प्रबंधन, बाढ़ को नियंत्रित करना और गर्मियों में बांग्लादेश में जल संकट से निपटना है. इससे पहले मई महीने में भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा बांग्लादेश दौरे पर गए थे, जहां भारत ने इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी दिखाई थी. 

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दरअसल चीन इस प्रोजेक्ट को इसलिए हथियाना चाहता है क्योंकि उसकी नजर ‘चिकन नेक’ पर है, जो भारत का बेहद संवेदनशील इलाका है. लिहाजा भारत कभी नहीं चाहेगा कि वहां ड्रैगन अपनी पैठ बढ़ाए.

मोंगला पोर्ट का मैनेजमेंट

यह बांग्लादेश के दक्षिणपश्चिम इलाके के बागेरहाट जिले में है. यह बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है. बांग्लादेश के दक्षिणपश्चिम हिस्से के लिए यह व्यापार की रीढ़ है. इतना ही नहीं बंगाल की खाड़ी में सामरिक हितों के मद्देनजर यह भारत के लिए भी बेहद अहम है.

पिछले साल चीन की कंपनी युन शेंग बी.डी. ने मोंगला एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन (EPZ) में एक फैक्ट्री लगाने के लिए बड़ी इन्वेस्टमेंट करने का वादा किया था. यह जगह मोंगला पोर्ट से लगी हुई है. कंपनी ने दावा किया है कि वह फैब्रिक्स, गारमेंट्स और गारमेंट्स एक्सेसरीज बनाने के लिए 89 मिलियन डॉलर खर्च करेगी. 

दरअसल चीन का मकसद मोंगला पोर्ट का कंट्रोल अपने हाथ में लेना है. जबकि भारत भी इसके ऑपरेशन कंट्रोल हासिल करने में जुटा हुआ है और वहां नया टर्मिनल बना रहा है. अगर भारत और बांग्लादेश की बात बनी तो चाबहार और म्यांमार में सित्तवे बंदरगाह के बाद यह तीसरा अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह होगा, जिसका कंट्रोल भारत के हाथों में होगा. 

नए लोन्स का फ्रेमवर्क

बांग्लादेश के विकास में भारत का अहम हाथ रहा है. साल 2010 से अब तक भारत बांग्लादेश को 7.36 बिलियन डॉलर का कर्ज दे चुका है. लेकिन लोन की शर्तें सख्त होने के कारण बांग्लादेश सिर्फ 1.73 बिलियन डॉलर का ही उपयोग कर पाया है. दरअसल वर्तमान भारतीय ऋण सहायता (एलओसी) की शर्तें काफी कठोर हैं. इसके मुताबिक, हर प्रोजेक्ट के लिए जरूरी करीब 65-75 प्रतिशत चीजों या सर्विसेज को भारत से हासिल करना होता है, जिसके कारण अधिकारियों का कहना है कि परियोजना को पूरा करने में देरी होती है. 

पिछले कुछ महीनों से भारत और बांग्लादेश के अधिकारी लोन के नए फ्रेमवर्क, उसकी कीमत और शर्तों पर काम कर रहे हैं. इनके अलावा म्यामांर संकट, नया रेलवे नेटवर्क बनाने और भारत की ओर से हथियारों की बिक्री को लेकर भी बातचीत हो सकती है. ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक एनर्जी, कनेक्टिविटी को लेकर करीब 10 एग्रीमेंट और एमओयू साइन हो सकते हैं.  

  



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By attkley

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