Delhi Liquor Policy: दिल्‍ली की आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरविंद केजरीवाल पहले से ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की न्‍यायिक हिरासत में हैं. इस बीच अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ाते हुए सीबीआई ने केजरीवाल को कथित आबकारी घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार के एक अन्‍य मामले में बुधवार को गिरफ्तार कर लिया. दिल्‍ली की अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की दायर अर्जी पर दलीलें सुनने के बाद केजरीवाल को तीन दिन के लिए इसकी हिरासत में भेज दिया. दिल्ली के उपराज्यपाल ने आबकारी नीति (2021-22) में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई से इसकी जांच कराने का आदेश दिया था जिसके बाद इस नीति को जुलाई 2022 में रद्द कर दिया गया था. उसी केस में ये गिरफ्तारी हुई है.

ईडी और सीबीआई जांच में अंतर?
कथित आबकारी घोटाले में ईडी, मनी लॉन्ड्रिंग केस की जांच कर रही है. यानी वो पैसे के लेन-देन से लेकर पैसा किन रूटों से कहां गया, इस पूरे मामले की जांच लगी है. वहीं सीबीआई इस मामले में भष्‍ट्राचार और वित्‍तीय अनियमतिताओं को लेकर जन सेवकों की भूमिका की जांच कर रही है.

ईडी ने सबसे पहले मार्च में अरविंद केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरेस्‍ट किया था. उनके खिलाफ आरोप गलत तरीके से धन के सृजन और इस्‍तेमाल का है. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्‍ट (PMLA) के सेक्‍शन 3 में मनी लॉन्ड्रिंग को अपराध माना गया है. इसके तहत धन को गलत तरीके से इधर-उधर करने, छिपाने, कब्‍जा, उपयोग और बेदाग संपत्ति के रूप में दावा करने को आपराधिक कृत्‍य मानती है.

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सीबीआई ने प्रिवेंशन ऑफ करप्‍शन एक्‍ट (पीसी एक्‍ट) के तहत कथित शराब घोटाले में भ्रष्‍टाचार का मामला दर्ज किया था लेकिन उसमें केजरीवाल को आरोपी नहीं बनाया था. इसी अप्रैल में सीबीआई ने केजरीवाल को पूछताछ के लिए बुलाया था लेकिन उस वक्‍त केजरीवाल के वकीलों ने ये तर्क दिया था कि वो इस केस में महज गवाह हैं, आरोपी नहीं.  

तो अब गिरफ्तारी क्‍यों?
सीबीआई के पास केजरीवाल की गिरफ्तारी का विकल्‍प हमेशा खुला था लेकिन उसके लिए ये जरूरी था कि उसके पास कोई ऐसा ठोस विश्‍वसनीय सबूत हो जो कथित घोटाले में उनकी भूमिका को सीधे तौर पर जोड़ता हो. ईडी के मामले में भी यह लिंक सीधा नहीं दिखता. ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक की दोहरी भूमिका के रूप में केजरीवाल को कथित दागी फंड से जुड़ने का मामला बनाया है. हालांकि भ्रष्‍टाचार के केस में ये कोई विकल्‍प नहीं हो सकता.

पीएमएलए में जमानत का रास्‍ता कठिन है लिहाजा वहां आरोपी को लंबे समय तक हिरासत में रखा जा सकता है. वहीं भ्रष्टाचार के मामले में कोई आरोपी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है. गैर-जमानती अपराधों में जमानत देना कोर्ट के विवेक के अधीन है. यानी पीसी एक्‍ट जमानत के लिए कठोर शर्तें लागू नहीं करता है.

पीसी एक्‍ट के तहत आरोपी क्रिमिनल प्रॉसीजर कोड के तहत नियमित जमानत की गुजारिश कोर्ट से करता है. हालांकि 2014 में इस व्‍यवस्‍था में एक संशोधन किया गया कि इस मामले में जब तक अभियोजन पक्ष को सुन नहीं लिया जाएगा तब तक किसी भी आरोपी को जमानत नहीं दी जाएगी. यानी अंतिम रूप से अभियोजन पक्ष के पास जमानत का विरोध करने का मौका रहेगा.



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By attkley

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