इन वजहों से मुगलों की थी फारसी में दिलचस्पी?
मुगलों को तुर्की से ज्यादा मोहब्बत फारसी से क्यों थी, इसकी कई वजहें थीं. इस संदर्भ में पहली बात ये है कि फारस के लोग मुगलों से गोरे होते थे. उनकी बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक थे. ये लोग मुगलों को गंवार मानते थे. मुगलों के प्रति उनका नजरिया और रवैया सही नहीं था. मुगल उन्हें श्रेष्ठ मानते थे, इसलिए उनके जैसा बनने और उनकी बराबरी करने की चाहत में उन्होंने फारस की भाषा और वहां की संस्कृति को अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
जब हिंदुस्तान में डोली मुगलों की सत्ता
दूसरी,जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को जंग में हराकर मुगल सल्तनत छीन ली तो उस मुश्किल घड़ी में फारस के शाह ने हुमायूं को मदद भेजी और जैसे तैसे मुगलों का राज भारत में चलता रहा. यानी फारस के लोगों के इस अहसान के चलते मुगल उन्हें कभी जवाब नहीं दे पाए, लेकिन मुगलों ने फारस के लोगों की बराबरी करने का तरीका ये अपनाया कि वो उनकी संस्कृति में डूब गए. बराबरी की चाह में मुगलों ने फारस के लोगों की तरह बनने और उनकी तहजीब सीखने के लिए अपना खजाना खोल दिया. आगे ये सिलसिला यानी कोशिश मुगलों की पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही.
अकबर ने भी अपनाई परंपरा
भारत में तीसरे मुगल शासक अकबर ने भी फारसी को ही जीवन माना. अकबर ने ईरान के नीम-हकीमों, विद्वानों, साहित्यकारों, दरबारियों, कारीगरों और व्यापारियों को बुलाने के लिए कई योजानएं चलाईं. जिनका असर आगरा से दिल्ली तक देखने को मिला. अकबर ने फारसी को जमकर बढ़ावा दिया. उसके 100 से ज्यादा फारसी साहित्यकारों को अपने दरबार में एडजस्ट किया. अकबर की जीवनी अकबरनामा का अनुवाद फारसी में हुआ. ये काम उस अब्दुल रहीम खानखाना ने किया जिनके पिता बैरम खान की मूलभाषा तुर्की थी. इससे समझा जा सकता है कि मुगलों के दौर में किस कदर फारसी फली-फूली.
बाबर की वंशावली और फारसी से मुगलों का प्रेम
दरअसल, बाबर के पिता तैमूर वंश से ताल्लुक रखते थे और मां चंगेज खान के वंश से, लेकिन बाबर को अपने ददिहाल पर गर्व था. भारत में मुगल राज की नींव रखने वाले इसी बाबर ने कई कविताएं फारसी में लिखीं. हुमायूं के दौर में फारसी बोलचाल की भाषा बनी. हुमायूं की बहन और अकबर की बुआ गुलबदन बेगम ने हुमायूंनामा भी फारसी भाषा में लिखा. मुगलिया दौर में मैथ से लेकर आर्ट्स की पढ़ाई फारसी में कराई गई. शाहजहां के बेटे दारा शिकोह ने तो एक नई लकीर खींचते हुए हिंदू धर्मशास्त्रों और उपनिषदों का अनुवाद फारसी में करा दिया.
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