Forest Brigand Veerappan : क्या कोई अपराधी किसी के लिए हीरो बन सकता है. जवाब इसका ना में होगा लेकिन भारत में एक ऐसा अपराधी हुआ जिसे उसके इलाके के लोग देवता मानते थे. उसकी छवि रॉबिनहुड की थी. लेकिन सैकड़ों परिवारों का गुनहगार भी था. उसे तीन राज्यों की सरकारें फॉरेस्ट ब्रिगैंड कहा करती थीं, बात यहां वीरप्पन की हो रही है. वैसे तो तमिलनाडु का रहने वाला था लेकिन तीन राज्यों की पुलिस परेशान थी. तीनों राज्यों की पुलिस जंगल जंगल भटकती थी. लेकिन वो जंगलों में बैठकर अपराध को अंजाम देता था. वीरप्पन के लिए खौफ उस खिलौने का नाम था जिसके जरिए वो दहशत और डर का साम्राज्य स्थापित कर चुका था लेकिन कहते हैं कि अपराधी उम्र लंबी नहीं होती लेकिन वीरप्पन के मामले में यह परिभाषा सटीक नहीं बैठी. पांच दशक तक बिना रोकटोक जंगल से हाथी के टस्क और चंदन की लकड़ियों की तस्करी कर अपना साम्राज्य चलाता रहा. हालांकि पाप का घड़ा फूटा और तमिलनाडु सरकार ने आरपार की लड़ाई छेड़ी. वीरप्पन के खात्मे के लिए साझा अभियान चलाया गया और तब जाकर कामयाबी मिली.
कौन था वीरप्पन
वीरपप्पन का असली नाम कूस मुनिसामी वीरप्पन गौंडर था. कुछ लोग उसे प्यार से गोपीनाथम नाम से भी बुलाया करते थे. 1952 में उसका जन्म हुआ था और 1990 में उसकी शादी हुई. उसके दो बच्चे भी थे जिनका नाम विद्या और प्रभा है. इलाके के लोग बताते हैं कि वीरप्पन शुरू से ही गुस्सैल था. जुर्म की दुनिया में उसने 10 साल या 14 साल की उम्र में कदम रखा. लोग बताते हैं कि उसने अपने रिश्तेदार सालवी गौंडर के मार्गदर्शन में पहली बार हाथी का शिकार किया था. 17 साल की उम्र में हत्या की और यहीं से वो समय के साथ खुंखार होता गया. वीरप्पन की सोच कुछ ऐसी हो चुकी थी कि अगर किसी पर थोड़ा भी शक होता था तो उसे जान से मार देता था. ऐसा कहा जाता है कि उसके हाथों से 180 लोग मारे गए जिसमें पलार ब्लास्ट भी शामिल था. पलार कांड में तमिलनाडु पुलिस के 22 लोग मारे गए थे.
180 लोगों के कत्ल का इल्जाम
यहां आपके जेहन में सवाल उठ रहा होगा कि जो 180 लोगों का हत्यारा था वो कैसे बचता रहा. इस सवाल के जवाब में लोग कहते हैं कि जंगलों के अंदर रहने वालों की वो भरपूर मदद किया करता था. इस तरह से उसे ना सिर्फ सुरक्षा बल्कि शासन प्रशासन में मजबूत खुफिया तंत्र स्थापित कर लिया था.इसके अलावा उसके वहशियान रूप और रंग को देखकर अधिकतर लोग बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे. इसके अलावा वो स्थानीय लोगों के लिए हीरो की तरह बन चुका.लोग पुलिस को विलेन मानते थे.यह देखते हुए कि उसकी 180 से अधिक हत्याओं में आधे से अधिक पुलिस अधिकारी शामिल थे, यह मानना सुरक्षित है कि वीरप्पन पुलिस से बिल्कुल नफरत करता था। नक्कीरन के संपादक आर गोपाल, जो उनका साक्षात्कार लेने वाले पहले पत्रकार थे उनके मुताबिक वीरप्पन अक्सर पुलिस को ‘राक्षस’ का रूप बताता था. वो कहा करता था कि गरीब ग्रामीणों पर हिंसा करने के लिए उनके खिलाफ तलाशी का इस्तेमाल किया। विडंबना यह है कि द गार्जियन ने 2004 में उनकी मृत्यु को ‘एक राक्षस की मौत’ के रूप में सराहा गया था. एक समय वीरप्पन को मारने का इनाम लगभग 15 करोड़ रुपए का था। ऑपरेशन कोकून नामक एक विवादास्पद मुठभेड़ में तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा मार दिया गया था. दशकों बाद लोग अभी भी इस बात पर बहस करते हैं कि राक्षस कौन था – पुलिस जिसने कथित तौर पर आदिवासी ग्रामीणों के साथ दुर्व्यवहार किया या खुद वीरप्पन, जो रॉबिन हुड की स्थिति का आनंद लेने के बावजूद बहुत हिंसक रिकॉर्ड रखता था.
फिरौती के लिए अपहरण बना पेशा
ज्यादा से ज्यादा पैसे की चाहत में वो वीआईपी लोगों का अपहरण करता था. कन्नड़ अभिनेता राजकुमार उनके सबसे प्रमुख अपहरण शिकार थे। उन्हें जुलाई 2000 में डाकू ने पकड़ लिया था और 108 से अधिक दिन कैद में बिताए थे. हालांकि, उन्होंने दावा किया कि उनके साथ भाई जैसा व्यवहार किया गया. यह बहस का विषय है कि क्या 72 वर्षीय अभिनेता वास्तव में ऐसा महसूस करते थे. वीरप्पन को कथित तौर पर 20 करोड़ रुपए की फिरौती दिए जाने के बाद उन्हें वापस कर दिया गया था लेकिन राजकुमार की रिहाई का तरीका अभी भी रहस्य में डूबा हुआ है। वीरप्पन द्वारा एक और हाई प्रोफाइल अपहरण एक सेवानिवृत्त कृषि मंत्री नागप्पा का अपहरण था। नागप्पा के लिए यह कठिन परीक्षा अच्छी नहीं रही, जो तीन महीने बाद मृत पाए गए हालांकि वीरप्पन ने मारने से इनकार किया था. जैसा कि हम सब जानते हैं कि पाप का घड़ा एक ना एक दिन फूटता है.वीरप्पन जो लोगों के बीच रॉबिनहुड के नाम से मशहूर था अब उसे मारने की फूलप्रुफ प्लांनिग बनी और 2004 में तमिलनाडु पुलिस की स्पेशल कार्रवाई में वो मारा गया.