राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले
– फोटो : अमर उजाला

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मानसिक और बौद्धिक गुलामी से बाहर आने के लिए भारत की वैचारिक विमर्श की दिशा को बदल कर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि 1947 में देश को आजादी मिल गई थी लेकिन बौद्धिक गुलामी से आज तक मुक्त नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने तो भारत में फूट डालने का काम किया लेकिन उसके बाद भी इस तरह के प्रयास होते रहे, धर्मनिरपेक्षता के मायाजाल में हिंदुओं को सांप्रदायिक ठहराया गया। लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे सुधारने का काम हो रहा है। 

इसके अलावा भारत के मूल अधिष्ठान के तत्व को पकड़ कर रखते हुए हमें चीजों को अपने अनुकूल बनाने की जरुरत है। डालीबाग स्थित गन्ना संस्थान में  बुधवार को राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका के 75 वर्ष पूरे होने पर विशेषांक राष्ट्रीय विचार साधना अंक के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए होसबाले ने कहा कि जिस मार्ग पर चलने से राष्ट्र और समाज का हित होता है वही राष्ट्रधर्म है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रधर्म से समझौता करने पर हानि होती है। 

सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि भारत एक राष्ट्र, जन और एक संस्कृति है। विविधता उसका सौंदर्य है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने आर्य और द्रविड़ को भारतीय समाज में स्थापित किया। इसका असर आजाद भारत में भी दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत की संसद का बजट शाम पांच बजे पेश होता था। प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल जी ने परंपरा बदली।

उन्होंने कहा कि हमें मानसिक और बौद्घिक गुलामी से भी बाहर आने की जरुरत है। उन्होंने कहा बौद्घिक गुलामी से आजादी के लिये राष्ट्रधर्म का प्रकाशन पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी बाजपेई ने शुरू किया था। उन्होंने कहा भारत की मिटटी का स्वभाव विश्व का कल्याण रहा है। हमारा संकल्प है कि भारत फिर से जगतगुरु हो। इसके लिए राष्ट्र धर्म का पालन जरूरी है। उन्होंने कहा कि आपातकाल में सभी लोगों ने लोकतंत्र को बचाने के लिये राष्ट्र धर्म का पालन किया था। 

 उन्होंने कहा कि शाश्वत धर्म, युगधर्म और व्यक्तिधर्म के बीच संतुलन होना आवश्यक है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए समाज की हर इकाई को इस सामंजस्य को बनाए रखना चाहिए।  उन्होंने लोकतंत्र के चारों स्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और पत्रकारिता में सामंजस्य को जरूरी बताया। होसबाले ने कहा कि मानसिक गुलामी को तिलांजलि देनी चाहिए इस दिशा में राष्ट्रधर्म प्रयास कर रहा है। 

भारत को जगद्गुरु बनाने का संकल्प
दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि राष्ट्रधर्म का ध्येय वाक्य है कि सारे विश्व का कल्याण होना चाहिए यह भारत की मिट्टी का स्वभाव है। सरकार्यवाह ने कहा कि स्वाधीनता की प्रथम किरणें जब आयीं तब भारत को विश्व गुरू बनाने का संकल्प राष्ट्रधर्म ने लिया।  कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सेवानिवृत्त न्यायधीश दिनेश कुमार त्रिवेदी ने कहा कि देश में कई धर्म के मानने वाले रहते हैं लेकिन राष्ट्र धर्म सभी धर्म से ऊपर है। जब देश पर विपदा आती है तो सभी देशवासी साथ खड़े हो जाते है यही राष्ट्रधर्म है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र धर्म में कोई टकराव नही है। वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने आपातकाल के अनुभवों को सांझा थकिया। यइस मौके पर पत्रिका के संपादक प्रो. ओमप्रकाश पांडेय, प्रभारी निदेशक सर्वेश चंद्र द्विवेदी, प्रबंधक डा. पवनपुत्र बादल ने भी विचार रखे। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, आरएसएस के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के प्रचारक अनिल, अवध प्रांत प्रचारक कौशल मुख्य रूप से मौजूद रहे।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मानसिक और बौद्धिक गुलामी से बाहर आने के लिए भारत की वैचारिक विमर्श की दिशा को बदल कर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि 1947 में देश को आजादी मिल गई थी लेकिन बौद्धिक गुलामी से आज तक मुक्त नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने तो भारत में फूट डालने का काम किया लेकिन उसके बाद भी इस तरह के प्रयास होते रहे, धर्मनिरपेक्षता के मायाजाल में हिंदुओं को सांप्रदायिक ठहराया गया। लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे सुधारने का काम हो रहा है। 

इसके अलावा भारत के मूल अधिष्ठान के तत्व को पकड़ कर रखते हुए हमें चीजों को अपने अनुकूल बनाने की जरुरत है। डालीबाग स्थित गन्ना संस्थान में  बुधवार को राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका के 75 वर्ष पूरे होने पर विशेषांक राष्ट्रीय विचार साधना अंक के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए होसबाले ने कहा कि जिस मार्ग पर चलने से राष्ट्र और समाज का हित होता है वही राष्ट्रधर्म है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रधर्म से समझौता करने पर हानि होती है। 

सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि भारत एक राष्ट्र, जन और एक संस्कृति है। विविधता उसका सौंदर्य है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने आर्य और द्रविड़ को भारतीय समाज में स्थापित किया। इसका असर आजाद भारत में भी दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत की संसद का बजट शाम पांच बजे पेश होता था। प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल जी ने परंपरा बदली।

उन्होंने कहा कि हमें मानसिक और बौद्घिक गुलामी से भी बाहर आने की जरुरत है। उन्होंने कहा बौद्घिक गुलामी से आजादी के लिये राष्ट्रधर्म का प्रकाशन पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी बाजपेई ने शुरू किया था। उन्होंने कहा भारत की मिटटी का स्वभाव विश्व का कल्याण रहा है। हमारा संकल्प है कि भारत फिर से जगतगुरु हो। इसके लिए राष्ट्र धर्म का पालन जरूरी है। उन्होंने कहा कि आपातकाल में सभी लोगों ने लोकतंत्र को बचाने के लिये राष्ट्र धर्म का पालन किया था। 

 उन्होंने कहा कि शाश्वत धर्म, युगधर्म और व्यक्तिधर्म के बीच संतुलन होना आवश्यक है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए समाज की हर इकाई को इस सामंजस्य को बनाए रखना चाहिए।  उन्होंने लोकतंत्र के चारों स्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और पत्रकारिता में सामंजस्य को जरूरी बताया। होसबाले ने कहा कि मानसिक गुलामी को तिलांजलि देनी चाहिए इस दिशा में राष्ट्रधर्म प्रयास कर रहा है। 

भारत को जगद्गुरु बनाने का संकल्प

दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि राष्ट्रधर्म का ध्येय वाक्य है कि सारे विश्व का कल्याण होना चाहिए यह भारत की मिट्टी का स्वभाव है। सरकार्यवाह ने कहा कि स्वाधीनता की प्रथम किरणें जब आयीं तब भारत को विश्व गुरू बनाने का संकल्प राष्ट्रधर्म ने लिया।  कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सेवानिवृत्त न्यायधीश दिनेश कुमार त्रिवेदी ने कहा कि देश में कई धर्म के मानने वाले रहते हैं लेकिन राष्ट्र धर्म सभी धर्म से ऊपर है। जब देश पर विपदा आती है तो सभी देशवासी साथ खड़े हो जाते है यही राष्ट्रधर्म है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र धर्म में कोई टकराव नही है। वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने आपातकाल के अनुभवों को सांझा थकिया। यइस मौके पर पत्रिका के संपादक प्रो. ओमप्रकाश पांडेय, प्रभारी निदेशक सर्वेश चंद्र द्विवेदी, प्रबंधक डा. पवनपुत्र बादल ने भी विचार रखे। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, आरएसएस के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के प्रचारक अनिल, अवध प्रांत प्रचारक कौशल मुख्य रूप से मौजूद रहे।





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By attkley

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