सार

अब तो महारथियों के रणकौशल का इम्तिहान है। इसलिए साधन नहीं, साधक अहम है। दिखाई भी दे रहा है। सुनाई भी दे रहा है। अब चुनाव उस दौर में पहुंच गया है जहां छवियां अहम हैं। प्रतिमान-कीर्तिमान अहम हैं। आज पढ़ें गोरखपुर, पथरदेवा, बलिया नगर, बैरिया, रसड़ा, फेफना और बांसडीह में किस ओर बह रही है सियासी बयार…

निज कबित्त केहि लाग न नीका।  सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं।  ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥

अर्थात सरस हो या अत्यंत नीरस, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती। किंतु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत में बहुत नहीं हैं॥ पूर्वांचल की धरती पर पहुंची चुनावी यात्रा पर गोस्वामी तुलसीदास की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। चुनाव आगे तो बढ़ा था मुद्दों के रथ पर सवार होकर। पर, मतदान करीब आते-आते रथ  कहीं पीछे छूट गया। काफी पीछे…। अब तो महारथियों के रणकौशल का इम्तिहान है। इसलिए साधन नहीं, साधक अहम है। दिखाई भी दे रहा है। सुनाई भी दे रहा है। अब चुनाव उस दौर में पहुंच गया है जहां छवियां अहम हैं। प्रतिमान-कीर्तिमान अहम हैं। अब तो हमले के नए औजार हैं। सीधे वार-पलटवार है। इसलिए नए राग हैं। नई कविताएं है। लफ्जों की छेनी से नई मूर्तियां गढ़ी जा रही हैं। महिमा मंडित की जा रही हैं। …तो विरोधी खेमे की मूर्तियां खंडित भी की जा रही हैं। आप भी लोकतंत्र के उत्सव का मजा लीजिए। पर, ध्यान रहे इन सियासी छेनियों का असर आपके संबंधों की तुरपाई पर न पड़े। रिश्तों की मिठास पर न पड़े। बहरहाल, आज पढ़ें गोरखपुर, पथरदेवा, बलिया नगर, बैरिया, रसड़ा, फेफना और बांसडीह में किस ओर बह रही है सियासी बयार…

शहर विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा प्रत्याशी हैं। पांच बार सांसद और पांच साल से मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे योगी आदित्यनाथ के सामने अन्य दलों के सभी प्रत्याशी राजनीति के नए खिलाड़ी हैं। सपा ने भाजपा से आईं सुभावती शुक्ला, बसपा ने ख्वाजा शम्सुद्दीन और कांग्रेस ने चेतना पांडेय को मैदान में उतारा है। ये सभी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं।

आंकड़ों पर निगाह डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि शहर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ है। जब भाजपा की लहर नहीं थी, तब भी कमल खिलता रहा है। पिछले 33 वर्षों से सीट पार्टी के पास है। अब योगी आदित्यनाथ प्रत्याशी बनाए गए हैं। वह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इसका प्रभाव भी मतदाताओं में दिखता है। मतदाता कहते हैं कि योगी की अगुवाई में ही भाजपा उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ रही है। चुनाव का मुख्य मुद्दा विकास ही है। गोरखपुर की सूरत बदल गई है। किसी तरह के पहचान का संकट नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के इलाज की सुविधा मिल चुकी है। फोरलेन सड़कों का जाल बिछ गया है।

गोरक्षपीठ का गहरा प्रभाव : शहर विधानसभा क्षेत्र में ही गोरखनाथ मठ है। इसका खासा प्रभाव रहता है। गोरक्षपीठाधीश्वर रहे महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर शहर लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे। उन्होंनेे जैसा चाहा, वैसे ही राजनीतिक समीकरण बनते रहे। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही गोरक्षपीठाधीश्वर हैं।
 

हिंदू महासभा से पहला चुनाव जीते थे डॉ. आरएमडी अग्रवाल
शहर विधानसभा क्षेत्र में गोरक्षपीठ का गहरा प्रभाव है। इसी का नतीजा रहा कि 2002 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। हुआ यूं था कि भाजपा से खटपट के बाद तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने हिंदू महासभा से डॉ. आरएमडी अग्रवाल को चुनाव लड़ाने का एलान कर दिया था। हिंदू महासभा के प्रत्याशी को जीत मिली। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद ही डॉ. आरएमडी भाजपा के संपर्क में आ गए। इसके बाद के चुनाव भाजपा से लड़े और जीतकर लखनऊ पहुंचते रहे।

हर बार बढ़ा  जीत का अंतर : इस सीट पर चुनाव में जीत का अंतर लगातार बढ़ा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन था। संयुक्त प्रत्याशी के रूप में राणा राहुल सिंह चुनाव लड़े, लेकिन भाजपा प्रत्याशी डॉ. आरएमडी अग्रवाल को करीब 62 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली थी। इससे पहले 2002 में 18 हजार, 2007 में 28 हजार और 2012 में 48 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली थी। नगर विधायक अग्रवाल कहते हैं, क्षेत्र में विकास की गंगा बही है। एम्स, खाद कारखाना, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, रामगढ़ताल परियोजना, चौड़ी सड़कें व बेहतर लाइटिंग की व्यवस्थाओं को देखा जा सकता है। मुहल्लों में जो सड़कें बनीं, वह 50 वर्षों तक नहीं टूटेंगी।

मतदाताओं के दिल की बात
दरगहिया मौर्या टोला के नरसिंह मौर्या चुनावी चर्चा छिड़ते ही कहते हैं,  गोरखपुर का जितना विकास पांच सालों में हुआ, उतना कभी नहीं हुआ था। मंदी के दौर और कोरोना की वजह से महंगाई बढ़ी है। जनता परेशान भी है, लेकिन महंगाई के नाते विकास को दरकिनार करना ठीक नहीं है। योगी आदित्यनाथ को और मौका मिला तो गोरखपुर विकास की नई ऊंचाइयों को छुएगा।

सहारा एस्टेट क्लस्टर बहार निवासी तूलिका त्रिपाठी कहती हैं, चुनाव का मुख्य एजेंडा विकास ही रहेगा। अब जरूरत महिला शिक्षा को और बेहतर बनाने की है। सराफा रेजिडेंसी बेतियाहाता निवासी खुशबू मोदी कहती हैं, यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जिला है, इसलिए विकास की परियोजनाएं तेजी से पूरी हुई हैं। अब सड़कें चमाचम व चौड़ी हैं। बिजली संकट नहीं है। सुरक्षा का माहौल है। बहन-बेटियां सुरक्षित हैं। श्रीश्री गोपाल मंदिर समिति मोहद्दीपुर के अध्यक्ष दीपक कक्कड़ कहते हैं, सुुरक्षा का बेहतर माहौल बना है। कारोबार आसान हुआ है। किसी तरह का दबाव नहीं है। रंगदारी नहीं मांगी जा रही है। महिलाएं अब डरती नहीं हैं। देर रात भी अपने काम से बाहर जाती हैं। गोरखपुर को एम्स जैसी बड़ी सौगात मिली है। खाद कारखाना चलने लगा है। इससे विकास की गति तेज होगी। रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

कायस्थ 95 हजार
वैश्य 40 हजार
दलित 30 हजार
ब्राह्मण 50 हजार
क्षत्रिय 30 हजार
मुस्लिम 40 हजार
निषाद 15 हजार
सैंथवार 20 हजार
यादव 12 हजार
(स्रोत : राजनीतिक दलों का अनुमान)

बलिया (संदीप सौरभ सिंह) फेफना विधानसभा सीट पर इस बार राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार उपेंद्र तिवारी की हैट्रिक रोकने के लिए सपा के संग्राम यादव ने तगड़ी घेरेबंदी की है। संग्राम की कोशिशें पिछले चुनाव में बिखरे यादव मतदाताओं को भी अपने पाले में लाने की है। हालांकि, यादव बहुल सीट पर बसपा के केडी यादव स्वजातीय वोटों में सेंध लगा रहे हैं। उन्होंने लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस ने जैनेंद्र पांडेय को टिकट देकर ब्राह्मण वोटों में सेंध लगाने का इंतजाम किया है। वहीं, भाजपा से बगावत कर यहां जेडीयू से अवलेश सिंह भी ताल ठोक रहे हैं।

सबसे पहले बात यहां के मिजाज और समीकरणों की। यादव बहुल होने की वजह से यह सीट कभी सपा का गढ़ मानी जाती थी। चार बार सपा के अंबिका चौधरी विधायक रहे। परिसीमन के बाद सीट का नाम बदल कर फेफना क्या हुआ, सपा के हाथ से यह सीट फिसल गई। वर्ष 2012 और 2017 के चुनाव में लगातार दो बार जीत दर्ज करने वाले उपेंद्र तिवारी के सामने प्रदर्शन को बरकरार रखने की चुनौती है। पिछले विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी थीं कि यादव मतों में बिखराव के कारण सपा तीसरे नंबर पर चली गई। इसकी एक वजह यह भी रही कि 2012 व 2017 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्र के दो दिग्गज यादव नेता अंबिका चौधरी व संग्राम सिंह यादव के चुनाव लड़ने से स्वजातीय मतदाता बंट जाते थे। इसका प्रत्यक्ष लाभ उपेंद्र तिवारी को मिला। पर अब समीकरण अलग हैं। बसपा के लिए अब तक सूखी ही रही इस धरती पर इस बार केडी यादव क्या कमाल दिखा पाते हैं, यह भी देखना होगा।

यादव  65 हजार
एससी  55 हजार
ठाकुर  40 हजार
ब्राह्मण  20 हजार
भूमिहार  20 हजार
राजभर  25 हजार
कोइरी  15 हजार
खरवार  10 हजार
वैश्य  15 हजार
मुसलमान  15 हजार
जनजाति  12 हजार
अन्य  80 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
उपेंद्र तिवारी, भाजपा 70,588
अंबिका चौधरी, बसपा 52,691
संग्राम सिंह यादव, सपा 50,016
 

बलिया : शहरी सीट पर इस बार मुकाबला कुछ ज्यादा ही दिलचस्प है। मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं तो चेहरे लड़ाई के केंद्र में आ गए हैं। कुल मिलाकर कहें तो भाजपा और सपा में तीखी जंग है। वहीं, बसपा भी पूरे दमखम से इस जंग को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है।

बात रणभूमि के योद्धाओं की करें तो भगवा खेमे ने विधायक आनंद स्वरूप शुक्ला का टिकट बदलकर प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में हैवीवेट प्रत्याशी दयाशंकर सिंह को मैदान में उतारा है। सपा ने कद्दावर नेता पूर्व मंत्री नारद राय को उतारा है। पिछले चुनाव में राय हाथी पर सवार होकर मैदान में उतरे थे। हालांकि, तब वे तीसरे पायदान पर ही अटक गए थे।  बसपा से नया चेहरा एवं व्यापारी शिवदास उर्फ  मदन वर्मा मैदान में हैं। उन्होंने भी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। ब्राह्मण और वैश्य मतदाता यहां किंग मेकर की भूमिका में हैं। इसे देखते हुए कांग्रेस ने ब्राह्मण चेहरे ओपी तिवारी को आगे बढ़ाया है। तो दूसरी ओर विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के बैनर तले उतरे भाजपा के बागी जितेंद्र तिवारी भी ब्राह्मण वोटों के बंटवारे के लिए जोर लगाए हुए हैं।

टिकट वितरण से बदला माहौल : भाजपा में टिकट के लिए बैरिया सीट पर ज्यादातर दावेदार क्षत्रिय थे। वहीं, बलिया नगर सीट पर ज्यादातर दावेदार ब्राह्मण थे। भगवा खेमे ने सदर से क्षत्रिय और बैरिया से ब्राह्मण प्रत्याशी की घोषणा कर दी। सपा के टिकट की घोषणा से पहले नारद राय के एमएलसी का चुनाव लड़ने की चर्चाएं थीं। वहां भी बलिया नगर सीट से क्षत्रिय दावेदारों की संख्या ज्यादा थी। ऐन वक्त पर नगर सीट पर नारद राय का टिकट पक्का कर दिया गया, जबकि बैरिया से ठाकुर प्रत्याशी दे दिया गया।

वैश्य 51 हजार
ब्राह्मण 46 हजार
यादव 42 हजार
क्षत्रिय 37 हजार
मुस्लिम 35 हजार
एससी 34 हजार
कुशवाहा 16 हजार
निषाद  16 हजार
भूमिहार 12 हजार
गोंड 12 हजार
राजभर 9 हजार
खरवार 8 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
आनंद स्वरूप शुक्ला, भाजपा 92,889
लक्ष्मण गुप्ता, सपा 52,878
नारद राय, बसपा 31,515
 

समाजवादी गढ़ के रूप में जानी जाने वाली बांसडीह सीट इस बार खासी चर्चा में है। चर्चा इसलिए भी है कि इस बार नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने अपना आखिरी चुनाव होने का मोहपाश चला है। उनके तरकश का ये तीर कितना असर दिखाता है, यह तो चुनाव परिणाम से ही पता चलेगा। पर, भाजपा ने अब तक अबूझ पहेली रही इस सीट पर जुझारू महिला नेता केतकी सिंह को मैदान में उतारकर चौधरी की तगड़ी घेरेबंदी की है। यह वही केतकी सिंह हैं, जिन्होंने 2017 के चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चौधरी को बेहद कड़ी टक्कर दी थी। महज 1687 वोटों के अंतर से चौधरी जीत पाए थे। सुभासपा छोड़ बसपा से चुनाव मैदान में उतरीं मानती राजभर ने सपा के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं। भाजपा से बगावत कर चुनाव मैदान में वीआईपी से मैदान में उतरे अजयशंकर पांडेय ब्राह्मण वोटों में सेंधमारी की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

चुनावी समरभूमि का मिजाज जानने के लिए हमें 2017 के चुनाव की पृष्ठभूमि में जाना होगा। 2017 में यह सीट भाजपा ने समझौते के तहत सुभासपा को दी थी। इस पर केतकी सिंह बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गई थीं। उन्होंने रामगोविंद को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार भाजपा का सुभासपा से गठबंधन टूट चुका है। केतकी सिंह ने भाजपा में वापसी कर ली है। सुभासपा सपा के साथ हो गई है। ऐसे में केतकी को अपने प्रभाव वाले मतदाताओं के साथ ही भाजपा के कोर वोटरों का सहारा है। वहीं, बसपा ने सुभासपा छोड़कर आईं मानती राजभर को प्रत्याशी बना दिया। बसपा के इस कदम से सपा गठबंधन के समीकरणों पर असर पड़ना तय है।

राजभर 55 हजार
ब्राह्मण 40 हजार
क्षत्रिय 45 हजार
यादव 48 हजार
एससी 20 हजार
बिंद  20 हजार
मौर्या  15 हजार
चौहान  18 हजार
बनिया   20 हजार
मुस्लिम  15 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
रामगोविंद चौधरी, सपा 51,201
केतकी सिंह, निर्दलीय 49,514
अरविंद राजभर, सुभासपा 40,234
शिवशंकर, बसपा 38,745

देवरिया की पथरदेवा विधानसभा सीट का सियासी मिजाज अलग है। इस बार यहां एक मंत्री और दो पूर्व मंत्रियों के बीच टक्कर है। तीनों को चुनौती देने के लिए चुनावी मैदान में एक जिला पंचायत सदस्य भी हैं। इस कारण मुकाबला दिलचस्प हो गया है। कांटे की टक्कर में सभी प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।

पथरदेवा सीट से भाजपा ने कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही को दोबारा मैदान में उतारा है। सपा ने पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को टिकट दिया है। बसपा से पूर्व मंत्री स्व. शाकिर अली के पुत्र परवेज आलम ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस ने जिला पंचायत सदस्य अंबरजहां को मैदान में उतारा है। इस सियासी चक्रव्यूह में कृषि मंत्री के रणकौशल की भी परीक्षा होने वाली है। बहरहाल, भाजपा की नजर, सैंथवार और अनुसूचित जाति के वोट बैंक पर है। वहीं, सपा प्रत्याशी पार्टी के कोर वोटर और ब्राह्मण मतदाताओं के सहारे मैदान में हैं। वैसे इस सीट पर मुस्लिम और सैंथवार मतदाता सब पर भारी हैं। यही कारण है कि दो प्रमुख दल कांग्रेस और बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।

प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही इस सीट से विधायक हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने सपा प्रत्याशी एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री शाकिर अली को शिकस्त दी थी। शाही भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं सरकार में 1985-1989 तक गृह राज्यमंत्री, 1991-1993 तक स्वास्थ्य मंत्री एवं 1996-2002 तक आबकारी एवं मद्यनिषेध मंत्री रह चुके हैं। इस बार उनके सामने सीट बचाने की चुनौती है। महंगाई, बदहाल सड़कें और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दे हैं। जिला पंचायत सदस्य एवं ब्लॉक प्रमुख चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज कार्यकर्ताओं को साधने की भी शाही के सामने चुनौती है।

आठवीं बार ब्रह्मा शंकर और  सूर्यप्रताप शाही आमने-सामने
पथरदेवा सीट से भाजपा से कृषिमंत्री सूर्यप्रताप शाही और सपा से पूर्व मंत्री ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी आठवीं बार आमने-सामने हैं। इससे पहले सात बार दोनों एक दूसरे के खिलाफ कसया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे, जिसमें चार बार ब्रह्मा शंकर तो तीन बार सूर्यप्रताप शाही विजयी रहे थे। साल 1985 में दोनों पहली बार आमने-सामने हुए, जब सूर्यप्रताप शाही विजयी रहे। ब्रह्मा शंकर उस समय निर्दलीय भाग्य आजमा रहे थे। दूसरी बार साल 1989 में ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी जनता दल से चुनाव लड़े और जीते। तीसरी बार साल 1991 में सूर्यप्रताप शाही ने ब्रह्मा शंकर को पराजित कर दिया। चौथी बार साल 1993 में सपा से ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी चुनाव लड़े और जीत हासिल की। पांचवीं बार 1996 में फिर सूर्यप्रताप शाही जीत गए और ब्रह्मा शंकर को पराजय का सामना करना पड़ा। छठवीं बार 2002 में ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी चुनाव जीत गए। सातवीं बार वर्ष 2007 में भी त्रिपाठी चुनाव जीत गए। वर्ष 2012 में पथरदेवा विधानसभा नव सृजित सीट बनी। सूर्यप्रताप शाही ने कसया क्षेत्र बदल कर पथरदेवा से भाजपा से चुनाव लड़े और सपा के शाकिर अली से हार गए। साल 2017 के चुनाव में सूर्यप्रताप शाही विजयी हुए। इस बार आठवीं बार दोनों दिग्गज फिर आमने-सामने हैं।

मुद्दों पर मुखर मतदाता
रामपुर खास गांव के विनोद कुमार जायसवाल कहते हैं, इस बार कोई लहर नहीं है। महंगाई, बेरोजगारी और किसानों के उपज का उचित मूल्य न मिलना प्रमुख मुद्दे हैं। नरायनपुर गांव के सरफराज अहमद कहते हैं, आमजन की नाराजगी काफी हद तक चुनाव नतीजे को प्रभावित करेगी। ग्राम पंचायत पथरदेवा के ग्राम प्रधान सीपीएन सिंह कहते हैं, भाजपा की लड़ाई किसी दल से नहीं है। सूर्यप्रताप शाही ने क्षेत्र का विकास किया है। तरकुलवा ब्लॉक के कनकपुरा गांव के प्रधान ब्रह्मदेव कुशवाहा का कहना है कि इस सीट पर राष्ट्रीय मुद्दों से अधिक स्थानीय मुद्दे हावी हैं।

रामपुर कारखाना और भाटपाररानी में भी रोमांचक मुकाबला
पथरदेवा सीट से वैसे तो तीन विधानसभा सीटें सटी हैं, लेकिन रामपुर कारखाना, भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र का इलाका अधिक लगा हुआ है। देवरिया सदर विधानसभा के कुछ गांव भी सटे हुए हैं। भाजपा और सपा के बीच टक्कर के आसार हैं। वैसे अन्य दलों के प्रत्याशी भी अपने वोट बैंक के साथ अन्य वोटरों सेंधमारी करने में जुटे हैं।

मुस्लिम 60 हजार
दलित  51 हजार
सैंथवार 37 हजार
वैश्य 32 हजार
यादव 25 हजार
ब्राह्मण  19 हजार
क्षत्रिय  13 हजार
कुशवाहा 12 हजार
राजभर 11 हजार
निषाद 6 हजार
भूमिहार 5 हजार
चौहान 6 हजार
अन्य  48 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
सूर्यप्रताप शाही, भाजपा 99,812
शाकिर अली, सपा 56,815
नीरज वर्मा, बसपा 22,790

बलिया : बैरिया विधानसभा सीट पर दिग्गजों के रणकौशल का इम्तिहान है। यहां घमासान चौतरफा है। इस चतुष्कोणीय रोमांचक जंग में मतदाता असमंजस में हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि यहां  कदम-कदम पर अलग-अलग बोल हैं। अलग-अलग हवा है। इस सबसे प्रत्याशियों के चेहरों पर भी नतीजों को लेकर आशंका की लकीरें खिंची हुई हैं।

मैदान-ए-जंग की बात हो इससे पहले हमें अतीत के झरोखे में झांकना होगा, ताकि पूरा परिदृश्य स्पष्ट हो सके। सबसे पहले बात 2017 के चुनाव की। इस सीट पर मोदी लहर में सुरेंद्र सिंह ने सपा के जयप्रकाश अंचल को अच्छे-खासे मतों के अंतर से चुनावी दंगल में  चित किया था। पर, सियासी समीकरण कुछ ऐसे बदले कि अपने बयानों और विशेष प्रकार की कार्यशैली से अलग पहचान बनाने वाले सुरेंद्र सिंह का टिकट कट गया।

उन्हें यह बात चुभी और वे बगावती तेवर दिखाते हुए विकासशील इंसान पार्टी से चुनाव मैदान में आ डटे। भगवा खेमे ने समीकरणों को साधने के लिए ब्राह्मण चेहरे राज्यमंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को मैदान में उतार दिया। सपा ने इस सीट पर वापसी के लिए अपने पुराने सिपहसालार पूर्व विधायक जयप्रकाश अंचल पर दांव लगाया, तो टिकट के एक और दावेदार सुभाष यादव बसपा से घोषित प्रत्याशी अंगद मिश्रा का टिकट बदलवा कर खुद मैदान में आ डटे। इससे जयप्रकाश के सामने भी स्वजातीय मतदाताओं को संभालने की चुनौती है। कांग्रेस ने युवा चेहरा कुमारी सोनम पर भरोसा जताया है।

क्षत्रिय 80 हजार
यादव 85 हजार
एसी  60 हजार
ब्राह्मण 40 हजार
कोइरी 25 हजार
मुस्लिम 10 हजार
वैश्य 10 हजार
अन्य  37 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
सुरेंद्र सिंह, भाजपा, 64,868
जयप्रकाश अंचल, सपा 47,791
जवाहर, बसपा 27,974
 

बलिया : जनपद की हॉट सीटों में शुमार रसड़ा सीट पर पिछले दो विधानसभा चुनावों से उमाशंकर सिंह का कब्जा है। उमाशंकर के पहले के दो चुनावों में भी सीट बसपा के ही कब्जे में रही है, हालांकि, तब इसका प्रतिनिधित्व घूरा राम ने किया था। 1996 में यहां एक बार कमल खिला चुकी भाजपा बसपा का चक्रव्यूह भेदने की कोशिश में पूरा जोर लगाए हुए है। वहीं, सपा का इस सीट पर अभी तक खाता नहीं खुल सका है। इस बार भी उसने सीट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दे रखी है। सुभासपा यहां लड़ाई अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर तो लगा ही रही है।

रसड़ा सीट 2007 तक सुरक्षित रही। पिछले सात चुनावों से इस सीट पर बसपा का दबदबा देखा जा रहा है। बहरहाल, उमाशंकर को घेरने के लिए अन्य दलों ने नए चेहरों पर भरोसा जताया है। सपा से गठबंधन होने से यह सीट सुभासपा को मिली है। भाजपा ने राजभर मतदाताओं को रिझाने के लिए पूर्व सांसद बब्बन राजभर को मैदान में उतारा है। बब्बन राजभर बसपा से सांसद भी रहे हैं। सुभासपा ने इस सीट से अपनी रणनीति बदलते हुए चौहान समाज से महेंद्र चौहान को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने डॉ. ओमलता को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि, वे अनुसूचित जाति के स्वजातीय मतों में कितना सेंध लगा पाती हैं, ये समय बताएगा।

1989 तक कांग्रेस का रहा प्रभाव :  वर्ष 1989 तक यहां कांग्रेस का प्रभाव रहा। हालांकि, यह बात अलग है कि 1977 में यह सीट जनता पार्टी तो 1974 में कम्युनिस्ट पार्टी के खाते में रही। 1989 के बाद यहां से कांग्रेस का पराभव शुरू हुआ।

एससी 90 हजार
राजभर 52 हजार
मुस्लिम 42 हजार
यादव 37 हजार
क्षत्रिय 33 हजार
वैश्य 20 हजार
चौहान 18 हजार
ब्राह्मण 10 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
उमाशंकर सिंह,  बसपा 92,272
राम इकबाल सिंह, भाजपा 58,385
सनातन पांडेय, सपा 37,006

विस्तार

निज कबित्त केहि लाग न नीका।  सरस होउ अथवा अति फीका॥

जे पर भनिति सुनत हरषाहीं।  ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥

अर्थात सरस हो या अत्यंत नीरस, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती। किंतु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत में बहुत नहीं हैं॥ पूर्वांचल की धरती पर पहुंची चुनावी यात्रा पर गोस्वामी तुलसीदास की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। चुनाव आगे तो बढ़ा था मुद्दों के रथ पर सवार होकर। पर, मतदान करीब आते-आते रथ  कहीं पीछे छूट गया। काफी पीछे…। अब तो महारथियों के रणकौशल का इम्तिहान है। इसलिए साधन नहीं, साधक अहम है। दिखाई भी दे रहा है। सुनाई भी दे रहा है। अब चुनाव उस दौर में पहुंच गया है जहां छवियां अहम हैं। प्रतिमान-कीर्तिमान अहम हैं। अब तो हमले के नए औजार हैं। सीधे वार-पलटवार है। इसलिए नए राग हैं। नई कविताएं है। लफ्जों की छेनी से नई मूर्तियां गढ़ी जा रही हैं। महिमा मंडित की जा रही हैं। …तो विरोधी खेमे की मूर्तियां खंडित भी की जा रही हैं। आप भी लोकतंत्र के उत्सव का मजा लीजिए। पर, ध्यान रहे इन सियासी छेनियों का असर आपके संबंधों की तुरपाई पर न पड़े। रिश्तों की मिठास पर न पड़े। बहरहाल, आज पढ़ें गोरखपुर, पथरदेवा, बलिया नगर, बैरिया, रसड़ा, फेफना और बांसडीह में किस ओर बह रही है सियासी बयार…

शहर विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा प्रत्याशी हैं। पांच बार सांसद और पांच साल से मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे योगी आदित्यनाथ के सामने अन्य दलों के सभी प्रत्याशी राजनीति के नए खिलाड़ी हैं। सपा ने भाजपा से आईं सुभावती शुक्ला, बसपा ने ख्वाजा शम्सुद्दीन और कांग्रेस ने चेतना पांडेय को मैदान में उतारा है। ये सभी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं।

आंकड़ों पर निगाह डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि शहर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ है। जब भाजपा की लहर नहीं थी, तब भी कमल खिलता रहा है। पिछले 33 वर्षों से सीट पार्टी के पास है। अब योगी आदित्यनाथ प्रत्याशी बनाए गए हैं। वह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इसका प्रभाव भी मतदाताओं में दिखता है। मतदाता कहते हैं कि योगी की अगुवाई में ही भाजपा उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ रही है। चुनाव का मुख्य मुद्दा विकास ही है। गोरखपुर की सूरत बदल गई है। किसी तरह के पहचान का संकट नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के इलाज की सुविधा मिल चुकी है। फोरलेन सड़कों का जाल बिछ गया है।

गोरक्षपीठ का गहरा प्रभाव : शहर विधानसभा क्षेत्र में ही गोरखनाथ मठ है। इसका खासा प्रभाव रहता है। गोरक्षपीठाधीश्वर रहे महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर शहर लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे। उन्होंनेे जैसा चाहा, वैसे ही राजनीतिक समीकरण बनते रहे। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही गोरक्षपीठाधीश्वर हैं।

 

हिंदू महासभा से पहला चुनाव जीते थे डॉ. आरएमडी अग्रवाल

शहर विधानसभा क्षेत्र में गोरक्षपीठ का गहरा प्रभाव है। इसी का नतीजा रहा कि 2002 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। हुआ यूं था कि भाजपा से खटपट के बाद तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने हिंदू महासभा से डॉ. आरएमडी अग्रवाल को चुनाव लड़ाने का एलान कर दिया था। हिंदू महासभा के प्रत्याशी को जीत मिली। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद ही डॉ. आरएमडी भाजपा के संपर्क में आ गए। इसके बाद के चुनाव भाजपा से लड़े और जीतकर लखनऊ पहुंचते रहे।

हर बार बढ़ा  जीत का अंतर : इस सीट पर चुनाव में जीत का अंतर लगातार बढ़ा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन था। संयुक्त प्रत्याशी के रूप में राणा राहुल सिंह चुनाव लड़े, लेकिन भाजपा प्रत्याशी डॉ. आरएमडी अग्रवाल को करीब 62 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली थी। इससे पहले 2002 में 18 हजार, 2007 में 28 हजार और 2012 में 48 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली थी। नगर विधायक अग्रवाल कहते हैं, क्षेत्र में विकास की गंगा बही है। एम्स, खाद कारखाना, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, रामगढ़ताल परियोजना, चौड़ी सड़कें व बेहतर लाइटिंग की व्यवस्थाओं को देखा जा सकता है। मुहल्लों में जो सड़कें बनीं, वह 50 वर्षों तक नहीं टूटेंगी।

मतदाताओं के दिल की बात

दरगहिया मौर्या टोला के नरसिंह मौर्या चुनावी चर्चा छिड़ते ही कहते हैं,  गोरखपुर का जितना विकास पांच सालों में हुआ, उतना कभी नहीं हुआ था। मंदी के दौर और कोरोना की वजह से महंगाई बढ़ी है। जनता परेशान भी है, लेकिन महंगाई के नाते विकास को दरकिनार करना ठीक नहीं है। योगी आदित्यनाथ को और मौका मिला तो गोरखपुर विकास की नई ऊंचाइयों को छुएगा।

सहारा एस्टेट क्लस्टर बहार निवासी तूलिका त्रिपाठी कहती हैं, चुनाव का मुख्य एजेंडा विकास ही रहेगा। अब जरूरत महिला शिक्षा को और बेहतर बनाने की है। सराफा रेजिडेंसी बेतियाहाता निवासी खुशबू मोदी कहती हैं, यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जिला है, इसलिए विकास की परियोजनाएं तेजी से पूरी हुई हैं। अब सड़कें चमाचम व चौड़ी हैं। बिजली संकट नहीं है। सुरक्षा का माहौल है। बहन-बेटियां सुरक्षित हैं। श्रीश्री गोपाल मंदिर समिति मोहद्दीपुर के अध्यक्ष दीपक कक्कड़ कहते हैं, सुुरक्षा का बेहतर माहौल बना है। कारोबार आसान हुआ है। किसी तरह का दबाव नहीं है। रंगदारी नहीं मांगी जा रही है। महिलाएं अब डरती नहीं हैं। देर रात भी अपने काम से बाहर जाती हैं। गोरखपुर को एम्स जैसी बड़ी सौगात मिली है। खाद कारखाना चलने लगा है। इससे विकास की गति तेज होगी। रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

कायस्थ 95 हजार

वैश्य 40 हजार

दलित 30 हजार

ब्राह्मण 50 हजार

क्षत्रिय 30 हजार

मुस्लिम 40 हजार

निषाद 15 हजार

सैंथवार 20 हजार

यादव 12 हजार

(स्रोत : राजनीतिक दलों का अनुमान)



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By attkley

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