Janta Party victory rally: लोकसभा चुनावों से पहले रामलीला मैदान में होने वाली रैलियों का अपना अलग इतिहास है. 2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Chunav 2024) के लिए होने वाली वोटिंग से पहले 31 मार्च को रामलीला मैदान में इंडिया ब्लॉक की रैली (India block rally) हुई. जिसमें 28 दलों के नेताओं का भाषण हुआ. यहां जुटी भीड़ के लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं. ऐसे में अब बात रामलीला मैदान में साल 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद हुई एक रैली की. इस रैली में अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे लोगों की भीड़ को जोश से भर दिया था. तब उन्होंने कहा था- ‘वोट देकर आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती. आप नींद में मत सो जाना.’
‘1975 के आपातकाल में कांग्रेस ने BJP और विपक्षी दलों के नेताओं को जेल भेजा था 1977 में जनता ने लिया बदला’
ये साल 1975 की बात है. इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा की थी. तत्कालीन विपक्षी नेताओं का कहना था कि इमरजेंसी लगाने से कांग्रेस पार्टी को तानाशाही चलाने की शक्तियां मिल गईं थीं. 25 जून 1975 को इमरजेंसी का ऐलान हुआ. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने तक भारत में आपातकाल रहा. आपातकाल की घोषणा के बाद विपक्ष के सारे नेता गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे यानी जेल में धकेल दिए गए थे.
रामलीला मैदान में हुआ था महाजुटान
मार्च 1977 में आपातकाल यानी इमरजेंसी हटाए जाने से पहले, इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में नए सिरे से चुनाव कराने का फैसला किया तो जेल में डाले गए सभी विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा करने का आदेश दिया था. इसकी पृष्ठभूमि में जनवरी 1977 में नई दिल्ली में जनता पार्टी की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चरण सिंह थे. भारतीय जनसंघ, भारतीय लोक दल, कांग्रेस (O), और सोशलिस्ट पार्टी उन समूहों में से थे जो पार्टी की स्थापना के लिए एक साथ आए थे. 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया था. तब विपक्षी दलों की मेहनत रंग लाई और कांग्रेस पहली बार सत्ता से बाहर हो गई थी. उसके बड़े-बड़े दिग्गज लोकसभा चुनाव हार गए थे.
2024 में विपक्षी दल एक साथ क्यों आए?
31 मार्च 2024 को पूरा विपक्ष एक साथ रामलीला मैदान में आया. उन्होंने कहा कि ये रैली लोकतंत्र बचाने के लिए बुलाई गई है. जबकि 28 दलों के नेताओं ने अपने भाषण में कहीं न कहीं चुनाव और अरविंद केजरीवाल की ईडी में हिरासत और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का जिक्र किया. यानी कुल मिलाकर आज की रैली में संविधान बचाने का हवाला देते हुए केजरीवाल की हिरासत और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी की बात बार-बार उठाई गई. कुल मिलाकर यही मुद्दा फोकस में रहा. रैली शुरू होने से पहले मंच पर एक पोस्टर लगा था जिसमें केजरीवाल सलाखों के पीछे दिख रहे थे. उसे हटा दिया गया. केजरीवाल का जेल में बंद वाला पोस्टर उसे ऐन मौके पर हटाया गया. जबकि 1977 में रामलीला मैदान में हुई रैली कई मायनों में आज से कहीं अलग और भारत की तस्वीर बदलने वाली थी
1977 में विपक्षी दल एक साथ क्यों आए?
लोकतंत्र को बचाए रखने की लड़ाई 1977 के चुनावों का मुख्य एजेंडा था. जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने के मकसद से चुनाव लड़ा. उनका अभियान कांग्रेस शासन के गैर-लोकतांत्रिक चरित्र और उस दौरान सत्तारूढ़ शासन द्वारा विभिन्न ज्यादतियों पर केंद्रित था. उन्होंने कई मुद्दे उठाए जिनमें घरेलू मुद्दे, आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस पर सेंसरशिप और उस समय की गई जबरन नसबंदी शामिल थी. वे देश में लोकतंत्र बहाल करने के वादे के साथ लोगों से जुड़ने में सक्षम थे.
इंदिरा हटाओ देश बचाओ का नारा आम चुनाव के लिए जयप्रकाश नारायण ने दिया था. इस नारे ने आपातकाल के दौर में कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर फेंका और देश में जनता पार्टी के शासन की शुरुआत हुई. सत्ता हासिल करने के अपने अभियान में, कांग्रेस ने एक शक्तिशाली केंद्र सरकार की आवश्यकता पर जोर दिया.
वो ‘अटल’ भाषण
1977 में इसी मैदान पर आयोजित उस रैली में अटल बिहारी वाजपेई को सुनने के लिए अनगिनत लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. रामलीला मैदान के बाहर भारी भीड़ थी. उस दौर के गवाह रहे लोगों का कहना है कि मानो उस दिन दिल्ली में तिल रखने की जगह नहीं बची थी.
1977 में ऐसी हो गई थी कांग्रेस की हालत
1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी यूपी, बिहार और हरियाणा में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. वहीं जनता पार्टी, विपक्षी दलों के तत्कालीन गठबंधन भारतीय लोक दल के प्रतीक पर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस की ऐतिहासिक और करारी हार हुई थी. हिंदी बेल्ट से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. कांग्रेस की उस महाविनाशकारी हार के बाद इमरजेंसी हटाई गई. इंदिरा गांधी ने पद छोड़ा. मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बनें वो भारत के पहले गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री थे. इस तरह भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी.