रिंपी गुप्ता, अमर उजाला, पटियाला (पंजाब)
Published by: ajay kumar
Updated Fri, 01 Oct 2021 12:56 AM IST

सार

अमरिंदर सिंह ने सेना में कैप्टन के पद पर रहकर 1963 से 1965 तक देश की सेवा की और 27 साल कांग्रेस में रहे। पहले 1980 से 1984 तक और फिर 1998 में कैप्टन ने दोबारा कांग्रेस ज्वाइन की। तब से लेकर अब तक कैप्टन कांग्रेस से ही जुड़े रहे। कैप्टन 1984 से 1992 तक शिअद और 1992 से 98 तक शिअद पंथक में रहे। 

कैप्टन अमरिंदर सिंह। (फाइल फोटो)
– फोटो : एएनआई

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पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस का पर्याय थे। कैप्टन के गढ़ पटियाला में हर वर्ग में उनके शाही परिवार के प्रति अलग ही क्रेज है। यही वजह है कि वे पटियाला में हर विरोधी को बड़ी शिकस्त देते हैं। वोट उनके नाम पर पड़ते हैं। गुरुवार को जैसे ही कैप्टन ने दिल्ली के अपने दौरे के दौरान कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की, उनके करीबियों और पटियालवी निराश हो गए।

वह करीबी जिन्हें कैप्टन ने बड़े ओहदों से नवाजा था, उन्होंने मीडिया के सवालों से बचने के लिए फोन उठाना बंद कर दिया या फिर फोन ही बंद कर दिया। इनमें नगर निगम के मेयर संजीव शर्मा बिट्टू, पीआरटीसी के चेयरमैन केके शर्मा खासतौर से शामिल रहे। अपने आगे के राजनीतिक कैरियर को लेकर यह लोग चिंता में हैं।

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वर्ष 1998 से पंजाब की राजनीति में केंद्र बिंदु रहे कैप्टन के आवास मोती महल में गुरुवार को सन्नाटा पसरा रहा। वहीं बड़े ओहदों पर काबिज मोती महल के करीबियों की तो हालत ही खराब है। वह दुखी होने के साथ-साथ असमंजस की स्थिति में हैं कि अब आगे उनके राजनीतिक कैरियर क्या रहेगा। उनकी कुर्सियां छिनेंगी या बच पाएंगी। उनकी पत्नी एवं सांसद परनीत कौर ने कहा कि राजनीति में जरूरत होती है कि यंग ब्रिगेड को आगे लाना लेकिन यह इस कीमत पर नहीं होना चाहिए कि पुरानों को पूरी तरह से नजरंदाज किया जाए। बस यही बात कैप्टन साहब को आहत कर गई। कैप्टन के आगे के राजनीतिक कैरियर पर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।    

इस मौके पर अमर उजाला से बात करते जिला कांग्रेस कमेटी पटियाला शहरी प्रधान केके मल्होत्रा ने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी हाईकमान द्वारा लिए फैसलों से काफी ठेस पहुंची थी। उन्हें जलील किया गया था, ऐसे में पार्टी छोड़ने का फैसला लेना स्वाभाविक है। निराशा के साथ सभी दुखी भी हैं, आगे की रणनीति के बारे में उन्होंने कहा कि जल्द ही मेयर, सभी ब्लाक प्रधानों, महिला कांग्रेस व यूथ कांग्रेस के ओहदेदारों साथ मिल कर बैठक की जाएगी। इस बैठक में विचार करके फैसला लिया जाएगा।

2017 में कैप्टन के नाम पर पंजाबियों ने डाली थी वोट
घन्नौर से कांग्रेस विधायक मदन लाल जलालपुर ने कहा कि वर्ष 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर पंजाब के लोगों ने वोट किया था। भले ही उनके साथ कुछ बातों को लेकर मतभेद रहे लेकिन उनके पंजाब व पंजाबियों के लिए किए कामों को भुलाया नहीं जा सकता। वह अपने में एक बड़े नेता हैं, जिनकी ऊंचाइयों तक पहुंचना मुश्किल है। पंजाब हमेशा कांग्रेस के लिए उनके योगदान को याद रखेगा।

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सभी के पसंदीदा नेता थे कैप्टन, बेहद निराशा हुई
पटियाला व्यापार बचाओ संघर्ष कमेटी के प्रधान राकेश गुप्ता ने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह सभी के पसंदीदा नेता थे। उनके कांग्रेस छोड़ने से बेहद निराशा हुई है। उम्मीद है कि अब मुख्यमंत्री के तौर पर चरनजीत सिंह चन्नी व्यापारियों के हक में अच्छी नीतियां बनाकर उन्हें कुछ रियायतें देंगे, जिससे व्यापारी कोरोना के कारण हुए नुकसान की भरपाई कर सकें।

विस्तार

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस का पर्याय थे। कैप्टन के गढ़ पटियाला में हर वर्ग में उनके शाही परिवार के प्रति अलग ही क्रेज है। यही वजह है कि वे पटियाला में हर विरोधी को बड़ी शिकस्त देते हैं। वोट उनके नाम पर पड़ते हैं। गुरुवार को जैसे ही कैप्टन ने दिल्ली के अपने दौरे के दौरान कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की, उनके करीबियों और पटियालवी निराश हो गए।

वह करीबी जिन्हें कैप्टन ने बड़े ओहदों से नवाजा था, उन्होंने मीडिया के सवालों से बचने के लिए फोन उठाना बंद कर दिया या फिर फोन ही बंद कर दिया। इनमें नगर निगम के मेयर संजीव शर्मा बिट्टू, पीआरटीसी के चेयरमैन केके शर्मा खासतौर से शामिल रहे। अपने आगे के राजनीतिक कैरियर को लेकर यह लोग चिंता में हैं।

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वर्ष 1998 से पंजाब की राजनीति में केंद्र बिंदु रहे कैप्टन के आवास मोती महल में गुरुवार को सन्नाटा पसरा रहा। वहीं बड़े ओहदों पर काबिज मोती महल के करीबियों की तो हालत ही खराब है। वह दुखी होने के साथ-साथ असमंजस की स्थिति में हैं कि अब आगे उनके राजनीतिक कैरियर क्या रहेगा। उनकी कुर्सियां छिनेंगी या बच पाएंगी। उनकी पत्नी एवं सांसद परनीत कौर ने कहा कि राजनीति में जरूरत होती है कि यंग ब्रिगेड को आगे लाना लेकिन यह इस कीमत पर नहीं होना चाहिए कि पुरानों को पूरी तरह से नजरंदाज किया जाए। बस यही बात कैप्टन साहब को आहत कर गई। कैप्टन के आगे के राजनीतिक कैरियर पर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।    


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जल्द ही बैठक करके तय की जाएगी रणनीति



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